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दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवरद्वार
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अथ कीदृशं पुन कल्पते ? यत्तद् एकादशपंडपातशुद्ध क्रयणहनन- पचन- कृत-कारिताऽनुमोदन - नवकोटिभिः सुपरिशुद्ध, दशभिश्च दोषविप्रमुक्त, उद्गमोत्पादनेषणया शुद्धं व्यपगत च्युत-च्यावित त्यक्तदेहं च प्रासुकं व्यपगत संयोगमनंगारं विगतधूमं षट्स्थाननिमित्तं षट्कायपरिरक्षणार्थं अहन्यहनि प्रासुकेन भैक्ष्येण वर्तितव्यम्, यदपि च श्रमणस्य सुविहितस्य तु रोगातंके बहुप्रकारे समुत्पन्न वाताधिक पित्ततिभातिरिक्त कुपिते तथा सन्निपातजाते चोदय प्राप्ते उज्ज्वलबल विपुल कर्कशप्रगाढ़दुःखेऽशुभकटुकपरुषे चण्डफलविपाके महाभये जीवितान्तकरणे सर्वशरीरपरितापनकरे न कल्पते तादृशेऽपि तथात्मने परस्मै वा औषधभैषजं भक्तपानं च तदपि सन्निधीकृतम् । यदपि च श्रमणस्य सुविहितस्य तु पतद्ग्रहधारिणो भवति भाज भांडोपध्युपकरणं पतद्ग्रहः पात्रबन्धनं पात्र के सरिका पात्रस्थापनं पटलानि त्रीण्येव रजस्त्राणं च गोच्छ्कस्त्रय एव च प्रच्छादा रजोहरणचोलपट्टकमुखानन्तकादिकं एतदपि च संयमस्य बृंहणार्थं वातातपदंशमशक शीतपरिरक्षणार्थतया उपकरणं रागद्वेषरहितं परिधर्तव्यं संयतेन नित्यम्, प्रतिलेखन ( प्रत्युपेक्षण, प्रस्फोटन प्रमार्जनायां अहोरात्र अप्रमत्तन भवति सततं निक्षेतव्यं च गृहीतव्यं च भाजनभांडोपध्युपकरणम् ।
पदान्वयार्थ - ( जो सो यह आगे कहा जाने वाला जो ( चरिमं संवरदारं ) अन्तिम परिग्रहविरति अपरिग्रहवृत्तिरूप-संवरद्वार है, वह ( संवरवरपादपो ) संवर के रूप में श्रेष्ठ वृक्ष है । वह ( वीरवरवयणविरति पवित्थर बहुविहप्पकारो ) श्री भगवान् महावीर स्वामी के श्रेष्ठ वचनों से कही गई परिग्रहनिवृत्ति ही उसका विस्तार ( फैलाव ) है तथा अनेक प्रकार के भेदों से युक्त है । ( सम्मत्तविसुद्ध मूलो) सम्यग्दर्शन ही उस अपरिग्रह वृक्ष की विशुद्ध जड़ है । (धितिकंदो) धैर्य - चित्तस्वास्थ्य ही उसका कन्द है, स्कन्ध से नीचे का भाग है । ( विणयवेइओ) विनय-नम्रता ही उसकी पार्श्ववेदिका थला है । (निग्गततिलोक्क विपुल जसनिविड- पीण-पवरसुजातखंधी) अपरिग्रह, का तीनों लोकों में व्याप्त विस्तीर्ण यश ही उसका घना, स्थूल, महान् और सुनिष्पन्न स्कन्ध-तना है । ( पंचम हव्वय विसालसालो) उसकी पंचम महाव्रत-रूप विशाल शाखायें हैं । ( भावणतयंतज्झाण सुभजोगनाण पल्लववरं - कुरधरो ) अनित्यत्वादि भावना ही उस अपरिग्रह वृक्ष को अन्तिम त्वचा - छाल है, तथा वह धर्मादि ध्यान, शुभयोग और ज्ञानरूप पत्तों और श्रेष्ठ अंकुरों को धारण