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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ७५२ है । अतः मालूम होता है "दूध-दही आदि की तरह मद्य-मांस का सेवन साधुओं के लिए सर्वथा त्याज्य नहीं है !” इसका समाधान यह है कि मद्य मांस वैसे तो साधुओं के लिए सर्वथा वर्जनीय हैं । साधुओं के लिए शास्त्र में अमज्जमंसा सिणो' (मद्यमांस का सेवन न करने वाले) विशेषण प्रयुक्त किया गया है । अतः साधु के लिए मद्य-मांससेवन का तो सवाल ही नहीं उठता। किन्तु कदाचित् साधु को पता न हो और किसी दवा में मांस, रक्त या मद्यसार मिला हो, उसे साधु सेवन कर ले; अथवा कोई व्यक्ति गाढ़ रागवश साधु को मद्यमांसादि - मिश्रित आहार देने लगे और वह भूल से ग्रहण करले या सेवन कर ले। इस बात को स्पष्ट करने के लिए यहाँ पर मद्य-मांस का निषेध किया है । दूसरा समाधान वृत्तिकार देते हैं कि विग्गइय ( विकृतिक विकृति - जनक ) पदार्थों का नाम गिनाया है । इसलिए शास्त्रकार ने प्रसंगवश विकृतिकों के साथसाथ मद्य-मांस को भी विकृतिक रूप से बताने के लिए, इन दोनों पदों का ग्रहण किया है । अथवा इसका समाधान यों भी किया जा सकता है, कोई साधु अपनी गृहस्थावस्था में कदाचित् मद्य-मांस का सेवन करता रहा हो, फलतः दोनों को या दोनों में से एक को देखकर उसे पूर्वकालसेवित मद्य-मांस की याद आ जाय और वह किसी गढ़-भक्त के यहाँ से ले आवे । इसी के निषेध के लिए शास्त्रकार मद्यमांस दोनों का किसी भी हालत में सेवन करने का सर्वथा निषेध करते हैं । मदिरा निषेध के लिए निम्नोक्त शास्त्रीय प्रमाण देखिए 'सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मज्जगं रसं । ससक्खं न पिबे भिक्खू, जसं सारक्खमप्पणो ॥' अर्थात् - 'भिक्षु जौ के आटे आदि से बनी हुई सुरा ( शराब ), अंगूर आदि से बनी हुई प्रसन्ना नाम की मदिरा और महुड़ा आदि से बने हुए मद्य विशेष का कदापि पान न करे । भगवान् केवली द्वारा मद्य का सदा सर्वथा निषेध है, अथवा मैंने सदा के लिए मद्य का सर्वथा त्याग केवली की साक्षी से किया है, यह विचारकर मद्यपान कदापि न करे । आत्मा की रक्षा करने में ही साधु की यशकीर्ति प्रतिष्ठा की सुरक्षा है ।' इसलिए भिक्षा के ४२ दोषों से रहित शुद्ध आहार के रूप में प्राप्त होने पर भी भिक्षु मद्य-मांस का सेवन कतई न करे । क्योंकि ये दोनों त्रसजीवों को अत्यन्त पीड़ित एवं वध करके निष्पन्न होते हैं, और बाद में भी इसमें कई समूच्छिम रसज जीव पैदा होते हैं । इस दृष्टि से इन दोनों को बिलकुल त्याज्य समझना चाहिए।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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