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________________ ७३८ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र दुब्ली, ठिगनी आदि के रूप में शरीर का ढांचा डोलडौल, रंगरूप, हाथ, पैर और आँखों की रमणीयता, लावण्य आकृति, यौवन, स्तन, नीचे का ओठ, कपड़े, हार आदि अलंकार, वेषविन्यास रा साज सज्जा या शृंगारप्रसाधन (य) तथा (गुज्झोवकासियाइं) गुप्तांगों के स्थान (य) और (एवमादियाइं अन्नाणि) इसी प्रकार के अन्य (तवसंजमबंभचेरघातोवघातियाई) तप, संयम और ब्रह्मचर्य का अल्प या पूर्ण रूप से घात करने वाले (पावकम्माई) पाप-कर्मों को (बंभचेरं) ब्रह्मचर्य का (अणुचरमाणेणं) पालन करने वाला साधू (न चक्खुसा) न आँखों से देखने की, (न मणसा) न मन से चिन्तन करने की (न वयसा) और न वचन से कहने को (पत्थेयव्वा) इच्छा करे। (एवं) इस प्रकार (इत्थीरूवविरतिसमितिजोगेण) स्त्रीरूप निरीक्षण से निवृत्तिरूप समिति के मन वचन काया के योगप्रयोग से (भावितो) संस्कृत (भवति) हो जाता है । (आरतमणविरतगामधम्मे) ऐसे साधु का मन ब्रह्मचर्य में संलग्न हो जाता है और उसकी इन्द्रियाँ विषयों से विरक्त हो जाती हैं। वही (जिइंदिए) जितेन्द्रिय साधु (बंभचेरगुत्त) ब्रह्मचर्य का पूर्ण सुरक्षक होता है । (चउत्थं) चौथी पूर्वरत पूर्वक्रीडितविरतिसमिति भावना है, जो इस प्रकार है-(पुव्वरय-पुत्वकोलिय-पुव्वसंगंथगंथसंथुया) पूर्व-गृहस्थाश्रम में अनुभव को हुई कामरति तथा गृहस्थावस्था में की हुई द्यूतादिक्रीडा तथा पूर्वकालिक श्वसुरकुल के साले, साली, साले की पत्नी, पुत्री आदि सम्बन्ध के कारण परिचित, (जे ते) जो जो हों, उन्हें कामोदय दृष्टि से देखना, कहना और स्मरण करना योग्य नहीं है । (य) तथा (आवाह विवाह चोल्लकेसु) वधू के साथ वर को घर में लाने के समय, विवाह के समय तथा बालक के चूडाकर्म-चोटी रखने के संस्कार के अवसर पर (तिथिसु) वसंतपंचमी आदि तिथियों पर, (जन्नसु) यज्ञों-पूजाओं में य) तथा (उस्सवेसु) उत्सवों में (सिंगारागार चारुवेसाहि) शृंगार रस की गृहस्वरूप सुन्दर वेशभूषा वाली स्त्रियों के, (हाव-भाव-पललिय-विक्खेव-विलास-सालिणोहिं) हाव-मुखविकार, भावमानसिक विकार, हाथ-पैर आदि अंगों का कोमल न्यास-संचालन, चित्त को व्यग्रता के कारण लापरवाही से किया हुआ शृंगार विपर्यास तथा विलासयुक्त चाल से शोभायमान (अणुकूल पेम्मिकाहिं) अनुकूल प्रेम रखने वाली प्रेमिकाओं के (सद्धि) साथ (उदुसुह-वरकुसुम-सुरभिचंदण-सुगंधिवर-वासधूव-सुहफरिस-वत्थभूसण-गुणोववेया) ऋतु के अनुकूल सुख देने वाले सुन्दर फूल, श्रेष्ठ सुगन्धित चन्दन, सुगन्धित उत्तम चूर्ण वास-पाउडर, धूप, शुभस्पर्श, वस्त्र, आभूषण आदि भोगों को बढ़ावा देने वाले पदार्थों के गुणों से युक्त (सयणसंपओगा) शयन-सहवास का (अणुभूया) अनुभव पूर्वकाल
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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