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________________ ७२६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र होता है, वैसे ही सब व्रतादि में ब्रह्मचर्य उत्तम है। आर्त, रौद्र आदि ध्यानों में परमशुक्ल ध्यान सर्वोत्कृष्ट ध्यान है, वैसे ही व्रतादि में ब्रह्मचर्य सर्वोत्कृष्ट है। मतिश्रु त आदि पांच ज्ञानों में परम केवल ज्ञान की तरह सिद्ध श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य व्रत है । छह लेश्याओं में परमशुक्ल लेश्या के समान ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है। मुनियों में सर्वश्रेष्ठ मुनि तीर्थंकर माने जाते हैं, वैसे ही व्रतों में सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मचर्य है। क्षेत्रों में महाविदेह क्षेत्र की तरह उत्तम, पर्वतों में गिरिराज मेरुपर्वत की तरह सर्वोच्च, वनों में नन्दनवन की तरह रमणीयतर, वृक्षों में जम्बू वृक्ष की तरह श्रेष्ठ यह ब्रह्मचर्य व्रत है। सुदर्शन नाम से भी इसका यश प्रसिद्ध है, इसी जम्बू के नाम पर से ही इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है। जैसे अश्वपति, गजपति, रथपति और नरपति; इस प्रकार चतुरंगिणी सेना से युक्त राजा प्रसिद्ध है, वैसे ही ब्रह्मचर्य व्रत चारों कोनों में प्रसिद्ध है। जैसे कोई रथिक साधारण रथ को छोड़कर बड़े रथ में बैठकर युद्ध करे तो कोई उसे पराजित नहीं र सकता, वैसे ही ब्रह्मचर्य महाव्रत रूपी महारथ में आरूढ़ होकर साधक कर्म शत्रुओं से जूझे तो वे उसे पराजित नहीं कर सकते। ब्रह्मचर्य की महनीयता-शास्त्रकार आगे चलकर ब्रह्मचर्य की महनीयता तीन गाथाओं द्वारा प्रगट करते हैं- पंचमहव्वय "वडिसकभूयं ।' इनका आशय यह है कि पंचमहाव्रत नामक उत्तम व्रतों का ब्रह्मचर्य मूल है, अथवा पांचमहाव्रतों और पांच अणुव्रतों का यह मूल है, या पंचमहाव्रती साधुओं के उत्तम नियमों का : १-ध्यान चार हैं-आतं, रौद्र, धर्म और शुक्लध्यान । इष्ट के वियोग और अनिष्ट के संयोग से जहां आत्मा में शोकादि रूप परिणामधारा होती है, उसे आर्तध्यान कहते हैं। इसके चार भेद हैं-इष्टवियोग जन्य, अनिष्ट संयोगजन्य, पीड़ाचिन्तन और निदान । हिंसाआदि क्रूर और निंदनीय कार्यों का चिंतन करना रौद्रध्यान है । इसके भी ४ भेद हैंहिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द और परिग्रहानन्द रौद्रध्यान । जीवों के कल्याण आदि के उपाय का या ऐसे दूसरे शुभ कार्यों का चिन्तन करना धर्मध्यान है। इसके चार भेद हैं—आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय और संस्थान विचय । केवल आमा और आत्मगुणों का ही चिन्तन करना शुक्लध्यान है। इसके भी चार भेद हैं-(१) पृथक्त्ववितर्क विचार (२) एकत्ववितर्क विचार (३) सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती और (४. ब्युपरत क्रियानिवर्ती । २-ज्ञान ५ हैं-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यायज्ञान और केवलज्ञान । ३-ये तीनों गाथाएँ त्रोटकछेद में हैं। -सम्पादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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