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________________ नौवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य-संवर ७१७ यमनियमगुणप्पहाणजुत्तं-अहिंसा सत्य आदि पांच महाव्रत या पांच अणुव्रत यम कहलाते हैं । जिनकी प्रतिज्ञा जीवन भर के लिए ली जाय, उन्हें यम कहते हैं और जिनके लिए काल की अमुक अवधि नियत की जाय, उन्हें नियम कहते हैं। इसलिए ब्रह्मचर्य गुणों में प्रधान यमनियमरूप गुणों से युक्त रहता है। मतलब यह है कि यम और नियम जहाँ होंगे, वहाँ ब्रह्मचर्य अवश्य ही रहेगा। अब्रह्मचारी यमनियम का पालन करने में सर्वथा असमर्थ होगा ; क्योंकि अब्रह्मचर्य का सेवन करने वाले प्रायः हिंसा झूठ चोरी आदि पापों का आश्रय लेते हैं। वे हिंसादि पापों से बच नहीं सकते और नियमादि का पालन करने में सर्वथा उदासीन रहते हैं। हिमवंतमहंततेयमंतं- यह ब्रह्मचर्य हिमवान् पर्वत से भी अधिक तेजस्वी है। हिमवान् पर्वत लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई आदि में तमाम पहाड़ों से बड़ा है। परन्तु ब्रह्मचर्य उससे भी बढकर है । ब्रह्मचारी की तेजस्विता और कान्तिके सामने हिमवान् की कान्ति और तेजस्विता फीकी लगती है । ब्रह्मचर्य की गरिमा बताते हुए एक आचार्य कहते हैं. व्रतानां ब्रह्मचर्य हि, विशिष्टं गुरुकं व्रतम् । तज्जन्यपुण्यसम्भारसंयोगाद् गुरुरुच्यते ॥ अर्थात्-'ब्रह्मचर्य सभी व्रतों में विशिष्ट और बड़ा माना गया है। गुरु अर्थात् बड़ा या महान् तो इसे इसलिए माना जाता है कि इसके पालन से होने वाले पुण्यों का पुंज इकट्ठा हो जाता है।' अन्य मतावलम्बी भी ब्रह्मचर्य की महत्ता स्वीकार करते हैं एकतश्चतुरो वेदा ब्रह्मचर्य च एकतः। . एकतः सर्वपापानि मद्यमांसं च एकतः ।। तराजू के एक पलड़े में चारों वेद रखे जांय और दूसरे में ब्रह्मचर्य रखा जाय, इसी तरह एक ओर सभी पाप रखे जांय और दूसरे में मद्य-मांस जन्य पाप को चढ़ाया जाय, तो भी इनमें समानता नहीं प्रतीत होती है । तात्पर्य यह है कि चारों वेदों से ब्रह्मचर्य का पलड़ा ही सबसे भारी रहता है । क्योंकि पुण्य की राशि ब्रह्मचर्य के पास ही होती है, और पुण्यराशि वाला ही सदा महान् होता है। पसत्थगंभीरथिमितमझ-इसका तात्पर्य यह है कि ब्रह्मचर्य के पालन करने से ही अन्तःकरण उदार, गम्भीर और स्थिर हो सकता है । जो कामी-भोगी व्यक्ति है. उसके हृदय में एकाग्रता नहीं होगी ? उसका चित्त चंचल रहेगा । ऐसे हृदय में कहाँ गम्भीरता और स्थिरता होगी ? कामी पुरुषों का हृदय छिछला होने के कारण स्वार्थी ही होता है, उदार नहीं । ब्रह्मर्य से व्यक्ति में गम्भीरता, उदारता और स्थिरता आती है, यह बात निश्चित है।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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