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________________ नौवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य-संवर ७११ वैसे ही व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है । आभूषणों में जैसे मुकुट प्रधान आभूषण है, वैसे ही व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। सब वस्त्रों में बारीक चिकने रूई के बने हुए वस्त्र उत्तम होते हैं, वैसे ही ब्रह्मचर्य सबमें उत्तम है । सब पुष्पों में प्रधान कमल के समान व्रतों में प्रधान ब्रह्मचर्य है, समस्त चन्दनों में गोशीर्षचन्दन के समान श्लाघनीय है । सब औषधियों के जनक हिमवान् पर्वत की तरह यह भी सब व्रतों का जनक है, समस्त नदियों में सीतोदा नदी के समान विशाल है। सब समुद्रों में स्वयम्भ्रमण समुद्र के समान महान् है, वलयाकार-गोल चक्राकार पर्वतों के बीच में तेरहवें द्वीप में स्थित रुचकवर पर्वत के समान यह सबसे श्रेष्ठ है । समस्त हाथियों में ऐरावत हाथी के समान प्रशस्त है। सब पशुओं पर सिंह के आधिपत्य के समान यह समग्र व्रतों पर आधिपत्य रखने वाला है । सुपर्ण कुमार देवों में वेणुदेव इन्द्र के समान ब्रह्मचर्य प्रधान है । असरजाति के नागकूमार देवों में धरणेन्द्र के समान प्रभुताशाली है, कल्पवासी देवलोकों में ब्रह्मलोक के समान प्रशस्त है, समस्त सभाओं में सुधर्मा सभा के समान आदरणीय है । सब स्थितियों में अनुत्तर वैमानिक देवों की सात लवरूप उत्कृष्ट स्थिति के समान यह सब व्रतों में उत्कृष्ट है, आहारादि सब दानों में अभय दान की तरह उत्तम व्रत है, समस्त कंबलों में किरमिची रंग के विशेष कंबल के समान यह सब व्रतों में विशिष्ट है। छह संहननों में वज्रऋषभनाराच संहनन के समान यह परमोत्कृष्ट है। छह संस्थानों में समचतुरस्र संस्थान के समान यह व्रतों में प्रधान है। मति, श्रुत आदि पांच ज्ञानों में क्षायिक केवलज्ञान के समान यह श्रेष्ठ और सिद्ध-सम्पूर्ण है अथवा परमपूज्य व प्रसिद्ध है । छह लेश्याओं में परमशुक्ल लेश्या के समान यह पवित्र व्रत है। इसी प्रकार मुनियों में जैसे तीर्थंकर जगवंद्यहैं वैसे ही यह जगवंद्य व्रत है। भरतादि क्षेत्रों में महाविदेह के समान यह प्रशस्त है, सब पर्वतों में गिरिराज मन्दराचल के समान यह सर्वोच्च है, सब वनों में नंदनवन के समान यह मनोहर है। सभी वृक्षों में जम्बूवृक्ष के समान श्रेष्ठ है । जम्बूद्वीप में इस जम्बूवृक्ष का दूसरा नाम और यश सुदर्शन के नाम से भी प्रसिद्ध है, इसी वृक्ष के नाम पर इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा है। जैसे अश्वपति, गजपति, रथपति और नरपति राजा विख्यात होता है, वैसे ही यह ब्रह्मचर्य भी विख्यात है । रथ पर सवार होकर युद्ध करने वाला जैसे राजा महान् रथ पर सवार होकर शत्रुओं
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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