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नौवाँ अध्ययन ; ब्रह्मचर्यसंवर
ब्रह्मचर्य का माहात्म्य और स्वरूप आठवें अध्ययन में तृतीय संवरद्वार-अचौर्यमहाव्रत का निरूपण करने के बाद अब शास्त्रकार नौवें अध्ययन चतुर्थ-संवरद्वार के रूप में ब्रह्मचर्य का निरूपण करते हैं, वह इसलिए कि अचौर्य का परिपूर्ण रूप से पालन तभी हो सकता है, जब ब्रह्मचर्य का भली-भाँति पालन हो । इसलिए ब्रह्मचर्य का निरूपण करना आवश्यक समझकर सर्वप्रथम निम्नोक्त सूत्रपाठ द्वारा ब्रह्मचर्य का माहात्म्य और स्वरूप बताते हैं।
मूलपाठ जंबू ! एत्तो य बंभचेरं उत्तमतवनियमणाणदंसण चरित्तसम्मत्तविणयमूलं, यमनियमगुणप्पहाणजुत्तं, हिमवंतमहंततेयमंतं, पसत्थगंभीरथिमितमज्झं अज्जवसाहुजणाचरितं, मोक्खमग्गं, विसुद्धसिद्धिगतिनिलयं, सासयमव्वाबाहमपुणब्भवं, पसत्थं, सोमं, सुभं, (खं), सिवमचलमक्खयकर, जतिवरसारक्खितं, सुचरियं, सुसाहियं, नवरि मुणिवरेहिं महापुरिसधीरसूरधम्मियधितिमताण य सया विसुद्धं, भव्वं, सव्वभव्वजणाणुचिन्नं, निस्संकियं, निब्भयं, नित्तुसं, निरायासं, निरुवलेवं, निव्वुतिघरं, नियमनिप्पकंप, तवसंजममूलदलियम्म, पंचमहव्वयसुरक्खियं, समिति गुत्तिगुत्तं, झाणवरकवाडसुकयं(रक्खणं), अज्झप्पदिन्नफलिहं, संनद्धोच्छइयदुग्गइपहं, सुगतिपहदेसग च लोगुत्तमं च वयमिणं पउमसरतलागपालिभूयं, महासगडअरगतुबभूयं, महाविडिमरुक्खक्खंधभूयं, महानगरपागारकवाडफलिहभूयं, रज्जुपिणिद्धो व इंदकेतू विसुद्धगगुणसंपिणद्ध, जंमि य भग्गंमि होइ सहसा सव्वं संभग्गमद्दिय