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________________ आठवां अध्ययन : अचौर्य - संवर ६८३ योविनयः प्रयोक्तव्यः, अन्येषु चैवमादिषु बहुषु कारणशतेषु विनयः प्रयोक्तव्यः । विनयोsपि तपस्तपोऽपि धर्मस्तस्माद् विनयः प्रयोक्तव्यो गुरुषु साधुषु तपस्विषु च । एवं विनयेन भावितो भवत्यन्तरात्मा नित्यमधिकरणकरणकारापण ( कारणा) पापकर्मविरतो दत्तानुज्ञातावग्रहरुचिः । एवमिदं संवरस्य द्वारं सम्यक् संवृतं भवति सुप्रणिहितमेवं यावद् आख्यातं सुदेशितं प्रशस्तम् ॥ ( सू० २) तृतीय संवरद्वारं समाप्तमिति ब्रवीमि । पदान्वयार्थ - ) और ( इमं ) यह ( पावयणं) अचौर्यव्रत के सिद्धान्तरूप प्रवचन ( भगवया) भगवान् ने (परदव्वहरणवेरमणपरिरक्खणटुयाए) पराये द्रव्य की चोरी के त्याग रूप व्रत की रक्षा के लिए (सुकहियं) अच्छी तरह कहा है, जोकि (अत्तहियं) आत्मा के लिए हितकर है, (पेच्चाभावियं) जन्मान्तर में सहायक है, ( आगमेसिभद्द) आगामी काल में कल्याणकारी है, (सुद्ध) शुद्ध है - निर्दोष है, (नेआउयं) न्यायसंगत है, (अकुडिलं) कुटिलता से रहित है और ( अणुत्तरं ) सर्वोत्कृष्ट है, (सव्वदुक्खपावाणविओवसमणं) समस्त दुःखों और पापों का क्षय करने वाला है, (तस्स ततीयस्स) उस तीसरे दत्तानुज्ञातव्रत की (इमा ) ये निम्नोक्त (पंच भावणाओ) पांच भावनाएँ (परदव्वहरणवेरमणपरिरक्खणट्टयाए) परद्रव्यहरण से विरति की सुरक्षा के लिए ( होंति ) हैं । (पढमं ) पहली विविक्तवासवसतिसमिति भावना का स्वरूप इस प्रकार है -- (देवकुल- सभ- प्पवा-वसह रुक्खमूल-आराम-कंदरा-गर-गिरिगुहा- कम्मउज्जाणजाणसाला कुवितसाला- मंडव, सुन्नघर सुसाण-लेण आवणे) देवालय सभा, प्याऊ, संन्यासियों का मठ, वृक्ष का मूल वाटिकाएँ, कन्दराएँ, लोहे आदि की खानें, पर्वत की गुफा, चूने आदि के पीसने के घर, बागबगीचे, रथ आदि रखने की वाहनशालाएँ, घर की सामग्री रखने के भंडार, यज्ञादि के मंडप, सूने घर, श्मशान, पर्वतीय गृह और दूकानें (य) तथा ( एवमादियम) इसी प्रकार के ( अन्न मि ) अन्य ( दग-मट्टियबीजं - हरित तस - पाण- असंसत्त) पानी, मिट्टी, बीज, हरी वनस्पति और त्रसजीवों से असंयुक्त रहित, ( अहाकडे ) गृहस्थ द्वारा अपने लिए बनाए हुए (फासुए ) जीवजन्तु - रहित, (विवित्त) स्त्री आदि के रात्रिनिवास से रहित, अतएव (पसत्थे ) प्रशस्त योग्य, ( उवस्सए) उपाश्रय स्थान में (विहरियव्वं होइ ) निवास करना योग्य है, (य) और (जे) जो ( आहाकम्मबहुले) आधाकर्म दोष से परिपूर्ण है, (से) वह तथा (आसित - समज्जि - ओवलित्त सोहि छायण- दूमण लिपण अणुलिंपण- जलण- भंडचालण) जलका छिड़काव किया हुआ, कुड़ाकर्कट निकालकर झाड़बुहार कर साफ किया हुआ, ·
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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