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________________ आठवां अध्ययन : अचौर्यसंवर अचौर्यसंवर का स्वरूप सत्यसंवरद्वार के विविध पहलुओं पर निरूपण करने के बाद अब शास्त्रकार अचौर्यसंवरद्वार पर निरूपण करते हैं, क्योंकि असत्य का त्याग चोरी ( अदत्तादान) का त्याग करने पर ही सम्यक् प्रकार से हो सकता है । शास्त्रकार सर्वप्रथम सूत्रपाठ द्वारा अचौर्य का स्वरूप बताते हैं मूलपाठ , जंबू ! दत्तमणुण्णायसंवरो नाम होति ततियं सुव्वता ! महव्वतं गुणव्वतं परदव्वहरणपडिविरइकरणजुत्तं अपरिमियमरणंततण्हाणगय महिच्छ्मणवयणकलुस आयाणसुनिग्ग हियं, सुसंजमियमणहत्थपायनिभि (ह) यं निग्गंथं, णेट्ठिकं, निरुत्तं, निरासवं, निब्भयं विमुत्तं, उत्तमनरवसभ-पवरबलवग सुविहितजणसंमतं, परमसाहुधम्मचरणं, जत्थ य गामागर-नगर-निगम - खेड - कव्वड - मडंबदोणमुह-संवाह-पट्टणासमगयं च किंचि दव्वं मणिमुत्तसिलप्पवालकंस दूसरयय वरकणगरयणमादि पडियं पम्हुट्ठ विप्पणट्ठ न कप्पति कस्सइ (ति)कहेउ वा गेव्हिड वा अहिरन्नसुवन्निकेण समलेट्ठकंचणेणं अपरिग्गहसंवुडेणं लोगंमि विरहियव्वं, जंपि य होज्जाहि दव्वजातं खलगतं खेत्तगतं रन्नमंतरगतं वा किंचि पुप्फ-फल- तयप्पवाले - कंद-मूल-तण-कट्ठ- सक्करादि अप्पं च बहुं च अणु ं च थूलगं वा न कप्पति उग्गहंमि अदिण्णंमि गिहिउ जे, हणिहणि उग्गहं अणुन्नविय गेहियव्वं वज्जेयव्वो सव्वकालं -
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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