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________________ ६५४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र भी उतावली में आ कर कह देते हैं । जिनका परिणाम कभी-कभी भयंकर होता है ; अथवा कई बार सुनने वाले को उसकी बातें पूरी तरह से समझ में नहीं आतीं। कई लोग अपनी विद्वत्ता की छाप दूसरों के हृदय पर अंकित करने के हेतु से भी ऐसा करते हैं; लेकिन परिणाम उलटा ही आता है। कई दफा उतावल में बिना विचारे बोलने के बाद उसका परिणाम अहितकर निकलता है और उससे बोलने वाले को बाद में पछताना पड़ता है। इसलिए सत्यवादी को शीघ्रता से बोलने का परित्याग करना चाहिए। साथ ही चपलतापूर्वक बोलना भी हितावह नहीं है । चंचलता में कोई भी व्यक्ति अपनी बात पर स्थिर नहीं रह सकता । वह कभी कुछ कहेगा, कभी कुछ, अतः उसकी बातों पर किसी को भरोसा नहीं होगा। वाणीचपल मनुष्य किसी को वचन देकर बदलते देर नहीं लगाएगा। इसलिए चपलतापूर्वक बोलने से सत्य को खतरा पहुंचेगा। कड़वी और कठोर वाणी भी साधक के जीवन को कटु और कठोर बना देती है । उसका हृदय कटु व कठोर हो जाने से उसमें सबके प्रति घृणा, द्वेष, निर्दयता और क्रूरता भर जाती है। सबसे नफरत करने वाला व्यक्ति सबमें दोषदर्शन करेगा, ईर्ष्या, करेगा, वैमनस्य करेगा। इस तरह कड़वी और कठोर वाणी मनुष्य को सत्य से विचलित कर देती है। उसके मुंह से निकले हुए यथार्थवचन भी दूसरों को चुभते हैं, मर्मस्पर्शी होने से पीड़ा पहुंचाते हैं,इसलिए शास्त्रज्ञों की दृष्टि में वे असत्य ही हैं । उनका परित्याग करना चाहिए। कई साधक अपना रौब या प्रभाव दूसरों पर जमाने के लिए कटु या कठोर शब्दों का प्रयोग करते हैं; लेकिन कटु या कठोर शब्दों का प्रभाव प्रायः उलटा पड़ता है। यदि कभी अनुकूल भी पड़ता है तो वह स्थायी नहीं रहता। यथार्थ बात भी मृदु एवं प्रिय शब्दों में कहने पर ही अधिक प्रभावशाली बनती है। साहसपूर्वक बोला गया वचन भी सहसा विना विचारे बोला जाता है, वह भी स्वपरकल्याण का विरोधी है। दुःसाहसपूर्वक बोले गए वचनों के पीछे धृष्टता, बड़प्पन का गर्व, उद्धतता, अपनी ही हांके जाने का अविवेक, व्यर्थ गाल बजाने की और अपने मुह मियामिठू बनने की आदत होती है । ऐसे वचनों में असत्याश अधिक होता है, इसलिए त्याज्य समझना चाहिए । परपीड़ाकारी वचन तथ्यपूर्ण होते हुए भी हिंसाजनक होने से असत्य की कोटि में आते हैं। काने को काना, अंधे को अंधा कहना यद्यपि तथ्ययुक्त है,तथापि उसके पीछे बोलने वाले की भावना उसे पीड़ा पहुँचाने की या चिढ़ाने की होने से ऐसे वचन सत्य भी असत्य हो जाते हैं। किसी को मर्मस्पर्शी वचन कहना, ताने मारना, अथवा इसे मारो, पीटो, इसे कत्ल करो, इत्यादि वचन परपीड़ाकारी होने से त्याज्य समझने चाहिए। सावद्य-पापयुक्तवचन भी सत्यार्थी के जीवन के लिए हानिकारक है । जिन
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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