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________________ सातवां अध्ययन : सत्य-संवर इस प्रकार का चिन्तन करके चित्त में स्थिरता-धीरता से संस्कारदृढ़ हुआ अन्तरात्मा हाथ, पैर, आँख एवं मुख पर संयमशील साधु सत्यव्रत पालन में बहादुर तथा सत्य और आर्जव से सम्पन्न हो जाता है। पांचवीं हास्यसंयम-वचनसंयमरूप भावना इस प्रकार है-- हास्य का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि हंसी करने वाले लोग वास्तविक बात को छिपाने वाले मिथ्यावचन तथा अविद्यमान बातों को प्रगट करने वाले असद्वचन या अशोभनीय वचन बोल देते हैं। तथा हंसी-मजाक दूसरों के तिरस्कार का कारण बन जाती है, हंसी को दूसरों की निन्दा ही प्यारी लगती है। हंसी दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाली है। हंसी-मश्करी चारित्र का नाश या मोक्षमार्ग का उच्छेद और शरीर की आकृति को विकृत कर देती है। अथवा हंसी परस्पर भेद-फूट डाल देती है और प्रियजनों में अलगाव पैदा कर देती है । हंसी-मजाक हमेशा परस्पर एक दूसरे के सम्पर्क से होती है। हंसीमजाक में बोला गया मर्मकारी वचन एक दूसरे को परस्पर चुभने वाला होता है । हास्य पारस्परिक कुचेष्टा को या परदारादि के गुप्त रहस्य को खोलने वाला कर्म है । हास्य विदूषकों, भांडों तथा तमाशों के निर्देश करने वालों के पास पहुंचाने का कारण है अथवा हास्य हंसी-मजाक करने वाले कान्दर्पिक देवों तथा भार ढोने वाले आभियोग्य देवों में निकृष्ट देवयोनियों में ले जाने वाला है। हास्य असुरजाति के भवनवासी देवों को पर्याय में तथा किल्विष देवों की पर्याय में उत्पन्न कराता है । इसलिए हास्य कदापि न करना चाहिए। इस प्रकार हास्यसंयम-वचनसंयमरूप मौनभावना द्वारा संस्कारप्राप्त अन्तरात्मा हाथ, पैर, आँख और मुह को अपने काबू में रखता है; वह संयम में पराक्रमी वोर अन्त में सत्य और निष्कपटभाव से सम्पन्न हो जाता है । . इस प्रकार मन, वचन और काया को चारों ओर से सुरक्षित रखने में कारणभूत इन पांचों भावनाओं के चिन्तन और प्रयोग से साधुजीवन में सम्यक् प्रकार से आचरित सत्यमहाव्रतरूप संवर का यह द्वार अच्छी तरह परिनिष्ठित संस्कारों में बद्ध हो जाता है। धैर्यवान् तथा बुद्धिमान साधक को कर्मों के आगमन के विरोधी, कलुषता से रहित, कर्मजलप्रवाह के निरोध के लिए छिद्ररहित, कर्मबन्धन के प्रवाह से रहित, संक्लिष्ट परिणामों से दूर, समस्त देवाधिदेव तीर्थंकरों द्वारा
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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