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________________ २४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र चण्ड-इसे चण्ड इसलिए कहा गया है कि यह उग्र क्रोध, उत्कट अभिमान, अत्यन्त माया और बेहद लोभ के कारण होता है। रुद्र-भयंकर रौद्र ध्यान हो, तभी यह दुष्कर्म होता है अथवा यह दुष्कर्म रौद्र (भयंकर) बना देने वाला है, इसलिए 'रुद्र' कहा गया है। क्षुद्र-जो रातदिन छल, धोखा द्रोह, मारपीट, कत्ल आदि में लगे रहते हैं, उनका यह कुकृत्य होने से, अथवा नीचातिनीच कृत्य होने से इसे क्षुद्रकर्म कहा है। . साहसिक—यह कार्य करने वाला कुछ भी सोचता-विचारता नहीं, और सहसा-एकदम किसी पर टूट पड़ता है या गर्दन पर छुरी चला देता है, अथवा यह कुकृत्य अत्यन्त दुःसाहस का है, इसलिए इसे साहसिक कहा है। अनार्य—इस कुकर्म के करने में निन्द्य-पाप कार्यों में लगे हुए म्लेच्छ लोग ही प्रवृत्त होते हैं, इसलिए इसे अनार्य कर्म कहा है। निर्घण—इस कृत्य के करने में पाप अर्थात् अधर्म से किसी बात की नफरत नहीं होती, इसलिए इसे निघृण कर्म कहा है । - नृशंस—यह क्रूर कर्म अमानुषिक—मानवता को तिलाञ्जलि देकर किया जाता है, इसलिए इसे नृशंस कर्म भी कहा है। ___महाभय-प्राणिवध से प्राणियों में बड़ा भारी भय व्यप्त हो जाता है, इसलिए इसे 'महाभय' कहा है। प्रतिभय—यह ऐसा भयंकर कृत्य है कि प्रत्येक प्राणी के दिल में भय पैदा कर देता है। मारने वाले के मन में भी भय बना रहता है, कि कहीं यह अथवा इसके सम्बन्धी जान गये तो मुझ से बदला लिये बिना न रहेंगे ; इस दृष्टि से इस कर्म को 'प्रतिभय' कहा है। - अतिभय-मौत का भय सब भयों से बढ़कर होता है । प्राणवध मृत्यु के भय का कारण होने से इसे 'अतिभय' भी कहा गया है। ___भयानक–जहाँ प्राणिवध होता है, वहां वह सभी प्राणियों को भयभीत कर देता है, अतः इसे 'भयानक' कहा है। त्रासनक—प्राणिवध जब किया जाता है तो उसमें वध्य प्राणी को सताया, मारा-पीटा या हैरान-परेशान किया जाता है, उसे भूखा-प्यासा रखकर पीड़ा भी दी जाती है, इसलिए त्रासजनक होने से इसे 'त्रासनक' भी कहा गया है। अन्याय्य-दूसरे के प्राण लेना या दूसरे के प्राणों को पीड़ा पहुंचाना अन्याय है। किसी का शोषण करना, उसे थोड़ा-सा देकर या बिल्कुल न देकर बदले में अत्यधिक काम लेना, जबर्दस्ती किसी का धन या पदार्थ हड़प जाना, छीन लंना, जीवों को सताना, उनकी सुखशान्ति में खलल पहुंचाना, उन्हें किसी भी तरह से दुःखी करना आदि सब अन्याय हैं । इसे यों भी कहें तो कोई अत्युक्ति न होगी, कि अन्याय की
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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