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________________ सातवां अध्ययन : सत्य-संवर ६२६ उसका नाम गोरा रखा गया । अथवा दम्भ से व्रत ग्रहण करने पर भी केवल साधु का रूप - वेष देख कर उसे 'साधु' कहना । किसी दूसरे पदार्थ का प्रतीत्य सत्य - किसी विवक्षित पदार्थ की अपेक्षा से स्वरूप बताना प्रतीत्यसत्य है । जैसे किसी व्यक्ति को 'लम्बा' या स्थूल' कहना | वह अपने से ठिगने या पतले की अपेक्षा से तो लम्बा या स्थूल है; परन्तु अपने से लम्बे या मोटे की अपेक्षा से नहीं । व्यवहारसत्य - नैगमनय या व्यवहार में प्रचलित अर्थ की अपेक्षा से जो वचन बोला जाय, वह व्यवहारसत्य है । जैसे रसोई की तैयारी करते हुए किसी ने कहा'मैं रसोई बना रहा हूं, भात बना रहा हूं ।' यद्यपि वह अभी पानी, लकड़ी आदि सामग्री इकट्ठी कर रहा है, रसोई बनानी शुरू भी नहीं की है । अथवा लोकव्यवहार में प्रचलित अर्थ की अपेक्षा से जो वाक्य बोला जाय, वह भी व्यवहारसत्य माना जाता है । जैसे -- गाँव के कहीं न जाने आने पर भी कहा जाता है — गाँव आ गया । घड़े से पानी के चूने पर भी कहना कि घड़ा चूता है इत्यादि । भावसत्य - किसी में कोई वर्ण आदि उत्कट मात्रा में हो, उस अपेक्षा से जो सत्य माना जाय, उसे भावसत्य कहते हैं । जैसे तोते में अन्य रंग होते हुए भी को हरा कहना, यह भावसत्य है । अथवा आगमोक्त विधिनिषेध के अनुसार अतीन्द्रिय पदार्थों में माने गए परिणामों को भाव कहते हैं । उस भाव का कथन करने वाला वचन भावसत्य है । जैसे सूखे, पके या अग्नि में तपाए हुए या नमक, मिर्च आदि से मिश्रित किये हुए बीजरहित फल आदि द्रव्य प्रासुक कहलाते हैं । यद्यपि इन फलादि के सूक्ष्म जीवों को चक्षुरिन्द्रिय से नहीं देखा जा सकता, तथापि आगम में पूर्वोक्त प्रकार से परिणत को प्रासुक मानने का उल्लेख होने से प्रासुक मानना, भावसत्य है । योगसत्य - किसी वस्तु के संयोग सम्बन्ध से उसका नाम रख देना, योग सत्य है । जैसे दण्ड के योग से किसी व्यक्ति को दंडी कहना योग्यसत्य है । उपमासत्य – जहाँ किसी प्रसिद्ध पदार्थ की सदृशता से किसी पदार्थ के बारे में कथन मिया जाय अथवा किसी पदार्थ की सिद्धि की जाय वहाँ उपमासत्य होता है । जैसे यह तालाब समुद्र की तरह है, मुख चन्द्रमा के समान है, आदि । पल्योपमकाल में पल्य शब्द गड्ढे का वाचक है काल को गड्ढे की उपमा देकर बताया गया कि एक योजन लंबे-चौड़े यौगलिकों के बालों से ठसाठस भरे हुए गड्ढे के समान काल पल्योपम है । सम्भावनासत्य — कहीं-कहीं योगसत्य के बदले सम्भावनासत्य मिलता है । सम्भावनासत्य का अर्थ है - जहां असंभवता का परिहार करते हुए वस्तु के किसी एक धर्म का निरूपण करने वाला वचन बोला जाय, वहां सम्भावनासत्य है । जैसेइन्द्र में जम्बुद्वीप को उथल देने की शक्ति है ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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