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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्रे
चतुर्दशपूर्वधारियों के पास श्रुतज्ञान की अगाधराशि होती है, मगर वे भी इसका रहस्य सत्यप्रवाद प्राभृत नामक छठे पूर्व से जान पाते हैं। दूसरे महर्षिगण भी दशवकालिक आदि शास्त्रों से इस सत्य को जान कर आचरण करते हैं । देवेन्द्रों, नरेन्द्रों, वैमानिक देवों, मंत्रविदों औषधिविशारदों, विद्यासाधकों और चारणमुनियों ने तथा श्रमणों ने सत्य के माध्यम से अपनी-अपनी इष्ट साधनाएं की हैं । जो मनुष्य अज्ञान या कषाय के वश सांसारिक सिद्धि या इन्द्रियविषयों के पोषण में ही सुख और कर्तव्य समझते हैं ; वे वास्तविक धर्म से विमुख विविध वेषधारी मतावलंबी भी आखिर सत्य की ही साधना करते हैं। ऐसे अनेक पाषंडियों ने भी सत्य की साधना द्वारा अभीष्ट फल प्राप्त किया है। सत्य की पूर्ण सीमा प्राप्त करना तो इन सब की शक्ति से परे की बात है । इसलिए सत्य को महासमुद्र से भी बढ़कर गम्भीर बताया गया है।
__दूसरे पहलू से देखें तो महासमुद्र प्रलयकाल की वायु से क्षुब्ध हो जाता है, अपनी मर्यादा को लांघ देता है, लेकिन सत्य और दृढ़ सत्यवादी को क्षुब्ध करने में संसार की कोई भी वस्तु समर्थ नहीं है। इसलिए यह महासागर से भी अत्यधिक गंभीर है। मेरुपर्वत की जड़ एक हजार योजन गहरी है ; प्रलयकालिक वायु भी उसे कम्पायमान नहीं कर सकती। इतना अडोल मेरुपर्वत है। फिर भी इन्द्र में इतनी शक्ति है कि वह चाहे तो जम्बूद्वीप को पलट सकता है, तो मेरुपर्वत को हिलाना उसके लिए क्या बड़ी बात है ? लेकिन वही इन्द्र सत्य और सत्यवादी · के सामने नतमस्तक हो जाता है; उसके स्थैर्यगुण की स्तुति करता है।
देवता या इन्द्र सत्यमहाव्रत को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि उनके शरीर और बाह्य निमित्त इसके लिए अनुकूल नहीं होते। इसलिए वे उस सत्य गुण और सत्यधारी महापुरुषों की वन्दना, पूजा, अर्चा, हार्दिक सत्कार, सम्मान और शारीरिक सेवा करके ही भविष्य के लिए अपनी आत्मा को उस गुण के योग्य बनाते हैं।
चन्द्रमण्डल में तीन गुण हैं- शान्ति करना, आह्लाद पैदा करना और अन्धकार मिटाना । चन्द्रमण्डल का उदय होने से उसकी चांदनी से सारे संसार को शान्ति
१ चौदह पूर्व ये हैं-१ उत्पाद, २ आग्रायणी, ३ वीर्यप्रवाद, ४ अस्ति
नास्तिप्रवाद, ५ ज्ञानप्रवाद, ६ सत्यप्रवाद, ७ आत्मप्रवाद, ८ कर्मप्रवाद ६ प्रत्याख्यान, १० वीर्यानुवाद, ११ कल्याण, १२ प्राणवाद, १३ क्रियाविशाल
और १४ लोकबिन्दुसार । इनके सांगोपांग अध्येता चतुर्दश पूर्वधारी कहलाते हैं।
-संपादक