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________________ ६०२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र संजमभारवहणठ्याए पाणधारणट्ठयाए भुजेज्जा ।' इसका भावार्थ यह है कि संयम की प्रवृत्तियों को करने के लिए, संयम के भार को वहन करने के लिए तथा जिंदगी टिकाए रखने के लिए साधु भोजन करे । इस प्रकार एषणासमिति के पूर्वोक्त तीनों पहलुओं पर साधु चिन्तन करे और तदनुसार उसे क्रियान्वित करे । इस प्रकार आहारैषणासमितिभावना का सम्यक्रूप से चिन्तन और प्रयोग करने पर आत्मा में इस समिति के संस्कार सुदृढ हो जाते हैं, उसका चारित्र निर्मल, शुभ परिणाम से युक्त एवं अखण्ड हो जाता हैं । ऐसा पूर्ण अहिंसा का उपासक सुसाधु ही मोक्षसाधना में अग्रसर होता है। आदाननिक्षेपसमितिभावना का चिन्तन, प्रयोग और फल-अहिंसामहाव्रत की सुरक्षा के लिए साधु को धर्मोपकरणों (सामान) को रखने—उठाने, या मलमूत्रोत्सर्ग आदि प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने हेतु आदाननिक्षेपसमिति भावना बताई गई है। जिसके चिन्तन और प्रयोग के लिए शास्त्रकार स्वयं अंगुलिनिर्देश करते हैं'पंचमं आदाननिक्खेवणसमिई ....."उवगरणं रागदोसरहियं परिहरितव्वं ..... निक्खियव्वं गिहियव्वं च भायणभंडोवहिउवगरणं।' इसका तात्पर्य यही है कि साधु को संयमयात्रा के लिए आहार की तरह वस्त्र, पात्र, कंबल, रजोहरण, पादपोंछन तथा सोने के लिए पट्टा,चौंकी, बिछौना (संस्तारक) दण्ड,चोलपट्टा, मुखवस्त्रिका आदि भिक्षा द्वारा प्राप्त किये हुए होने पर भी यदि उनके रखने-उठाने आदि का विवेक नहीं है तो ये उपकरण भी हिंसा के कारण बन जाते हैं। इसलिए आदाननिक्षेपणसमितिभावना में शास्त्रकार ने कुछ उपकरणों के नाम गिनाए हैं । साथ ही उन उपकरणों के रखने का प्रयोजन, उन्हें रखने के पीछे के भाव एवं उनकी देखभाल तथा रखने—उठाने में विवेक आदि बातों का निरूपण किया है । अतः साधु सर्वप्रथम यह चिन्तन करे कि महापुरुषों ने ये धर्मोंपकरण कितने, क्यों और किसलिए रखने और किस तरीके से उनका उपयोग करने का विधान किया है ? साधु को उक्त बारह तथा आदि शब्द से और भी धर्मोंपकरण शरीर को सुकुमार बनाने या मोटा ताजा बनाने के लिए नहीं, अपितु संयम के पोषण-वृद्धि के लिए रखने हैं। और रखने हैं- संयमयात्रा के लिए अनिवार्य साधनभूत शरीर की प्रतिकूल हवा, सर्दी, गर्मी, दंश, मच्छर आदि से रक्षा --- बचाव के लिए। फिर भी इन उपकरणों को राग (मोह,लोभ आदि) तथा द्वेष (घृणा आदि) से रहित हो कर ही रखना हैं । साथ ही इन उपकरणों का इस्तेमाल करने के दौरान प्रतिदिन प्रातः और सायं दोनों समय प्रमादरहित हो कर प्रमार्जन और प्रतिलेखन करे । उन्हें उठाते और रखते समय बड़ी सावधानी से जीवजन्तुओं को देख कर उठाए और रखे। इस प्रकार यहाँ जो भी उपकरण बताए गए हैं, वे साधु के संयम के लिए उपयोगी, ब्रह्मचर्य को रक्षा
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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