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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर ६०१ लगे तो धूमदोष लगता है । इस प्रकार द्वेषवश निन्दा करने वाले साधु का चरित्र धुंए की तरह कलुषित हो जाता है, इसलिए इसे धूमदोष कहा गया है । सरस और निर्दोष आहार के प्रति आसक्ति हो जाने से उसके दाता की या उस भोज्य पदार्थ की तारीफ करते हुए खाना अंगारदोष है । यह दोष साधु के चारित्रसाधना को अंगारों की तरह जलाने वाला होता है, अत: इसे अंगार कहा है । कारणदोष उसे कहते हैं, जहाँ साधु शास्त्र में बताए गए ६ कारणों के बिना ही आहार करे या ६ कारणों के बिना ही आहार का त्याग कर दे । साधु को आहार करने के लिए उत्तराध्ययनसूत्र में ६ कारण बताए हैं 'वेयण - वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए छट्ठ पुण धर्माचिताए' ॥ १ अर्थात्- – इन ६ कारणों से साधु आहार करे - ( १ ) भूख की वेदना – बेचैनी सहन न हो सके तो, (२) वैयावृत्य ( गुरु आदि की सेवा) करने के लिए, (३) ईर्यासमिति के पालन करने के लिए, (४) संयम की क्रियाओं को ठीक तरह से पालन करने के लिए, (५) प्राणधारण करने के लिए, और (६) धर्मं चिन्तन के लिए | भूख से बेचन साधु न तो सेवा कर सकेगा, न ईर्यासमिति का पालन कर सकेगा । भूख के मारे उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा जायगा, और वह संयम की क्रियाएँ नहीं कर सकेगा । पाणरक्खट्ठा । कुविज्जा ॥ साधु को आहार न करने के लिए भी ६ कारण बताए हैं'आयंके उवसग्गे बंभगुत्ती य तवसंलेहणमेवमभोजणं छसु अर्थात् - इन ६ कारणों से साधु आहार का त्याग करे - ( १ ) कोई आतंक उपस्थित होने पर, (२) अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग ( देव- मनुष्य- तिर्यंचकृत) आ पड़ने पर, (३) ब्रह्मचर्य यानी - कामोत्तेजना के शमन के लिए, (४) वर्षा, कुहरा आदि पड़ रहे हों, उस समय उन जीवों की रक्षा के लिए, (५) संलेखना - आमरण अनशन कर दिया हो तो, और (६) उपवास आदि तपश्चर्या के समय । आहार करने के कारण शास्त्रकार स्वयं बताते हैं- 'संजमजायामायानिमित्त १. निम्नलिखित गाथा भी आहार करने के ६ कारणों के सम्बन्ध में मिलती हैछुहवेयण - बेयावच्चे संजम सुहज्झाणपाणरक्खट्ठा । पाणिदया तवहे छट्ठ पुण धम्मचिंताए ॥१॥ — प्रवचनसारोद्धार - सम्पादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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