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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर जाते हैं और उन्हें जिन शक्तियों, लब्धियों, ऋद्धि-सिद्धियों, विभूतियों और बलों की उपलब्धि होनी चाहिए, वह भी नहीं हो सकती।
अहिंसा के पूर्ण उपासकों की भिक्षाविधि पिछले सूत्रपाठ में अहिंसा के विशिष्ट आचरणकर्ताओं की सूची दी गई है । अब आगे के सूत्रपाठ में शास्त्रकार अहिंसा के पूर्ण उपासकों की भिक्षाचर्या कैसी होनी चाहिए ? इसका निरूपण करते हैं
मूलपाठ इमं च पुढवि-अगणि-मारुय-तरुगण-तस-थावर सव्वभूयसंयमदयट्ठयाते सुद्धं उछं गवेसियव्वं अकतमकारियमणाहूयमणुदि8 अकीयकडं, नवहि य कोडिहिं सुपरिसुद्धं, दसहि य दोसेहिं विप्पमुक्कं,उग्गमउप्पायरणेसणासुद्धं,ववगयचुयचावियचत्तदेहं च, फासुयं च,न निसज्जकहापओयणक्खासुओवणीयंति,न तिगिच्छा-मंत-मूलभेसज्जकज्जहेउ, न लक्खणुप्पायसुमिणजोइसनिमित्त कहकप्प उत्तं । नवि डंभणाए,नवि रक्खणाते, नवि सासणाते,नवि दंभण-रक्खणसासणाते भिक्खं गवेसियव्वं । नवि वंदणाते,नवि माणणाते, नवि पूयणाते,नवि वंदणमाणणपूयणाते भिक्खं गवेसियव्वं । नवि हीलणाते, नवि निंदणाते, नवि गरहणाते, नवि हीलणनिंदणगरहणाते भिक्खं गवेसियव्वं । नवि भेसणाते,नवि तज्जणाते, नवि तालणाते, नवि भेसणतज्जणतालणाते भिक्खं गवेसियव्वं । नवि गारवेणं,नवि कुहणयाते, नवि वणिमयाते, नवि गारवकुहणवणीमयाए भिक्खं गवेसियव्वं । नवि मित्तयाए, नवि पत्थणाए, नवि सेवणाए, नवि मित्तपत्थणसेवणाते भिक्खं गवेसियव्वं । अन्नाए, अगढिए, अदुट्ठ, अदीणे, अविमणे, अकलुणे, अविसाती, अपरितंतजोगी, जयणघडणकरणचरियविणयगुणजोगसंप उत्ते भिक्खू भिक्खासणाते निरते । ___ इमं च णं सव्वजगजीवरक्खणदयट्ठाते पावयणं भगवया