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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर ५५७ aai द्वितीय सप्तरात्रदिन की प्रतिमा में भी सभी क्रियाएँ इसी के जैसी होती हैं । विशेष बात यही है कि इस प्रतिमा में उत्काटिकासन ( ऊकडू आसन) से बैठना, लगुड़ासन से तथा दण्डायतासन से सोना होता है और दिन-रात देवादिकृत उपसर्गों को सहना पड़ता है । दसवीं तृतीय सप्तरात्रि दिन की प्रतिमा में भी पूर्वोक्त बातें समझनी चाहिए । अन्तर केवल इतना ही है कि इसमें गोदुहासन से तथा वीरासन ( सिंहासनतुल्य आसन ) अथवा आम्रकुब्जासन से रहना पड़ता है । बाकी की क्रियाएँ पूर्ववत् ही हैं । इसके पश्चात् ग्यारहवीं प्रतिमा भी पूर्ववत् एक अहोरात्रि की होती है । विशेषता केवल इतनी ही है कि इसे शुरू करने से पहले एकाशन, बीच में षष्ठभक्त यानी दो चौविहार उपवास (बेला) और पारणे के दिन भी एकाशन करना होता है । गाँव या नगर के बाहर जा कर खड़े हो कर भुजाएँ नीचे लटका कर एक अहोरात्र तक स्थित रहना होता होता है । इसके अनन्तर बारहवी प्रतिमा ग्यारहवीं अहोरात्र की प्रतिमा के समान एक रात्रि की होती है । इसमें चौविहार अष्टमभक्त (तेला) करके, एक रात्रि के लिए गांव के बाहर जा कर कायोत्सर्ग में खड़े होकर, थोड़ा-सा आगे को झुके हुए किसी एक निश्चित पुद्गल पर एकटक दृष्टि लगा कर, शरीर को अडोल करके, इन्द्रियों को निश्चेष्ट कर, दोनों पैरों को समेट कर और जिनमुद्रा की तरह बांहें लटका कर स्थिर रहना पड़ता है । इस प्रकार की बारहवीं भिक्षु प्रतिमा का सम्यक् रूप से पालन करने पर या तो अवधिज्ञान प्राप्त होता है, या मनःपर्यायज्ञान अथवा अभूतपूर्व केवलज्ञान उत्पन्न होता है । यदि इसकी विराधना हो जाय तो उन्माद (पागलपन) हो जाता है, या दीर्घकालिक रोगान्तक पैदा हो जाता है और केवलिप्रज्ञप्त धर्म से भ्रष्ट हो जाता है । आयावह - धूप में खड़े हो कर आतापना लेने वाले मुनियों ने — भी अहिंसा होती है— जघन्य, मध्यम और आतापना जघन्य कहलाती है ; दण्डासन आदि से की जाने का आचरण किया है | आतापना तीन प्रकार की उत्कृष्ट । स्थिरादि आसन के द्वारा की जाने वाली उत्कटासन आदि आसन से की जाने वाली मध्यम और वाली आतापना उत्कृष्ट कहलाती है । सुयधरविदितत्थ कायबुद्धीहि - इसका तात्पर्य यह जिन मुनियों को सूत्ररूप १ इन प्रतिमाओं का विशेष वर्णन जानने के लिए दशाश्रु धस्कन्धचूर्णि वृत्ति, प्रवचनसारोद्धार, आवश्यकनियुक्ति तथा पंचाशक आदि का अवलोकन करें । -संपादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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