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________________ ५३० 'आयतणं' - गुणों का आश्रय होने से अहिंसा सरलता, सेवा, करुणा आदि आत्मा के सब गुण अहिंसा के बिना उक्त गुण टिक नहीं सकते । इसलिए गया है । श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र आयतन भी है । क्षमा, दया, आधार पर हैं । आयतन भी कहा अहिंसा के अहिंसा को 'जयणं' – प्राणियों की रक्षा का प्रयत्न यतन है । अहिंसा भी यतनारूप है । इसलिए यतन भी अहिंसा : का पर्यायवाचक गुणनिष्पन्न नाम है । अथवा 'जयणं' का यजन रूप भी होता है । यजन दान को कहते हैं । अहिंसा में सर्वप्रधान अभय का दान दिया जाता है । इसलिए अहिंसा को यजन भी कहें तो कोई अनुचित नहीं । 'अप्पमातो' - अप्रमाद का अर्थ है – मद्य, विषय, कषाय, निन्दा ( या निद्रा ) और विकथारूप पांच प्रमादों का त्याग । अहिंसा भी उक्त पांचों प्रमादों का त्याग करने से ही निष्पन्न होती है । प्रमादों के रहते अहिंसा हो नहीं सकती। प्रमादी से अहिंसा का पालन नहीं हो सकता । अतएव अहिंसा का 'अप्रमाद' नाम यथार्थ है । 'अस्सासो' – किसी दुःख और संकट से पीड़ित व्यक्ति को तसल्ली देना आश्वास या आश्वासन कहलाता है । अहिंसा भी भयभीत, दुःखित, पीड़ित, पददलित, शोषित और व्यथित जीवों को आश्वासन देती है । इसलिए अहिंसा का आश्वास नाम भी सार्थक ही है | 'वीसासो' – अहिंसा समस्त प्राणियों को विश्वास भरोसा देने वाली है । घबराते हुए, दुःख से संतप्त प्राणियों के दिलों में अहिंसा से बहुत बड़ा बिश्वास बैठ है | अहिंसा के भरोसे पर ही सारा संसार टिका है । अन्यथा, हिंसा से तो सारा संसार मरघट बन जाता । अतः अहिंसा का विश्वास नाम बिलकुल यथार्थ है । अभओ - दुनिया में अधिकतर प्राणी विविध प्रकार के भयों और आशंकाओं से त्रस्त हैं । हिंसा के व्यवहार से सारा संसार भयभीत है । अत: अहिंसा की गोद में आ कर ही सारा विश्व निर्भय, निःशंक और निराकुल बन सकता है । अहिंसा प्राणियों को भयमुक्त बनाती है ; अथवा यों भी कह सकते हैं कि अहिंसा के पालन करने वालों से सभी प्राणी निर्भय रहते हैं । इसलिए अभय का कारण होने से अहिंसा को अभय बताया गया है । सव्वस्स वि अमाघाओ - अहिंसा सर्वप्राणियों का उन्हें मृत्यु से बचाने वाली एक तरह से अमारिघोषणा है हैं | अहिंसा प्राणियों के लिए अघातरूप है । इसलिए इस । घात नहीं करने वाली, सभी प्राणी मृत्यु से डर 'अमाघात' कहा जाय तो अनुचित हीं है । 'चोक्ख पवित्ता सूती पूया' -- वैसे तो ये चारों शब्द एकार्थक प्रतीत होते हैं । लेकिन थोड़ा-बहुत अन्तर इन सबमें हैं । चोक्ख शब्द देश्य है, उसका अर्थ गुजराती और
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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