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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर .
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'पुट्ठी'-पुण्य वृद्धि के द्वारा आत्मा को पुष्ट करना पुष्टि है । अहिंसा के पालन से पुण्यवृद्धि होकर आत्मा की पुष्टि होती है। इस कारण कारण इसे 'पुष्टि' कहा गया है। जैसे रसायन का सेवन करने पर शरीर पुष्ट हो जाता है, वैसे ही अहिंसारूपी रसायन का सेवन करने पर आत्मा पुष्ट होती है, इस कारण भी इसे पुष्टि कहा गया है।
'नंदा' स्व-पर को आनन्दित करने वाली होने से अहिंसा को नन्दा कहा है । अहिंसक के सम्पर्क में जो भी आता है, वह आनन्दित हो कर जाता है, प्रसन्नता से उसका चित्त भर जाता है । अहिंसक का प्रायः कोई शत्रु नहीं होता, इसलिए उसके चित्त में सदा प्रसन्नता रहती है । अतः अहिंसा स्वपर-आनन्ददयिनी होने से उसे 'नन्दा' कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं है।
_ 'भद्दा'–भद्र कहते हैं-स्वपरकल्याण को। स्वपरकल्याणकारिणी होने से अहिंसा को 'भद्रा' कहना उचित है।
. 'विसुद्धी'...पापों का क्षय होने से आत्मा की विशुद्धि होती है। जीवन में निर्मल भावना होने पर ही अहिंसा फलित होती है। साथ ही अहिंसा के पालन से कलुषित विचारों और कषायों का क्षय होने से आत्मशुद्धि स्वाभाविक हो जाती है । अतः आत्मविशुद्धि का कारण होने से अहिंसा को 'विशुद्धि' कहा है।
___'लद्धी'- केवलज्ञान आदि क्षायिक लब्धियाँ अहिंसा का पूर्ण पालन करने से प्राप्त होती हैं । अहिंसा का पालन करने वाले मुनिवरों को अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा आदि अनेक सिद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं । अतः अहिंसा विविध लब्धियों और सिद्धियों का कारण होने से अहिंसा को 'लब्धि' कहा गया है।
_ 'विसिट्ठदिट्ठी'आध्यात्मिक जीवन की सफलता शुद्ध दृष्टि पर निर्भर है। दृष्टि विपरीत हो तो कोई भी धर्माचरण मोक्ष का कारण नहीं बनता । विविध धर्मों और दर्शनों में निहित सत्यों को मनुष्य खण्डनात्मक एकान्तदृष्टि से नहीं पा सकता; अपितु अनेकान्तदृष्टि से ही पा सकता है। और अनेकान्तदृष्टि वस्तुतः वैचारिक अहिंसा का ही एक अंग है। इसलिए अहिंसा विशिष्ट-अनेकान्तदृष्टि रूप होने से इसे विशिष्टदृष्टि कहना युक्तिसंगत है। अथवा जीवन में अहिंसा का दर्शन विशिष्ट दर्शन है, अन्य सब बातों का दर्शन गौण है । एक आचार्य ने व्यंग्य करते हुए कहा है
कि तीए पढ़ियाए पयकोडीए पलालभूयाए ।
जत्थेत्तिये न नायं, परस्स पीड़ा न कायव्वा ॥' अर्थात्- "भूसे के ढेर के समान उन करोड़ों पदों के पढ़ने से क्या लाभ; जिनसे इतना भी ज्ञात नहीं हुआ कि दूसरों को पीड़ा नहीं देनी चाहिए ?"
बास्तव में, जिसे स्पष्ट अहिंसादर्शन नहीं हुआ, वह दूसरे प्राणियों के प्रति