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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर ५२१ अभयदात्री है । यह समस्त प्राणियों के लिए अमारिघोषणारूप है। यह स्वच्छ है, पवित्र है, पवित्रता का कारण है; और भावों की निर्मलतारूप भाव पूजा का कारण है । यह आत्मा को विमल बनाने वाली, तेज से प्रकाशित करने वाली और जीवों को कर्मरजमल से रहित-अत्यन्त निर्मल करने वाली है। इस भगवती अहिंसा के ये और ऐसे ही अन्य निजगुण से निष्पन्नसार्थक पर्यायवाचक नाम हैं। . व्याख्या प्रस्तुत सूत्रपाठ में शास्त्रकार ने अपनी पूर्वप्रतिज्ञानुसार पांच संवरों में से सर्वप्रथम अहिंसासंवर के गुणकीर्तनपूर्वक गुणनिष्पन्न ६० नामों का निरूपण किया है। प्रसंगवश अहिंसा का लक्षण और उसके भेदों का विश्लेषण करके हम क्रमशः इन सब नामों पर विवेचन करेंगे। __ अहिंसा का लक्षण सामान्यतया अहिंसा का अर्थ 'न हिंसा अहिंसा' या "हिंसाविरोधिनी अहिंसा' यानी हिंसा न करना या हिंसा की विरोधिनी' अहिंसा होता है । इस दृष्टि से हिंसा का अर्थ पहले भलीभांति समझना आवश्यक है। हिंसा का स्पष्ट लक्षण है-'प्रमाद और कषाय के वश किसी भी प्राणी के प्राणों को मन, बचन, काया से बाधा-पीड़ा पहुंचाना । इसलिए अहिंसा का लक्षण होगा - प्रमाद और कषाय के वश प्राणी के १० प्राणों में से किसी भी प्राण का वियोग न करना, बल्कि प्राणरक्षा करना। ___ अहिंसा का केवल निषेधात्मक अर्थ यथार्थ नहीं है। क्योंकि व्याकरणशास्त्र के अनुसार अहिंसा में नत्र समास है और नत्र समास के दो रूप होते हैं--प्रसज्य और पर्युदास। प्रसज्य तद्भिन्न एकान्त निषेधरूप अर्थ का ग्राहक होता है,जबकि पर्युदास तत्सदृश अर्थ का। जैसे 'अब्राह्मण' कहने से ब्राह्मण से भिन्न किसी ठूठ या पत्थर आदि का ग्रहण न होकर ब्राह्मण के सदृश ब्राह्मणेतर मनुष्य का ग्रहण होता है; वैसे ही अहिंसा से हिंसा से भिन्न हिंसा के सदृश जीवरक्षा दया, करुणा, सेवा आदि किसी शुद्ध भाव का ग्रहण होता है। हिंसा अशुद्ध भाव है तो अहिंसा शुद्ध भाव है, पर भावत्व दोनों में समान है, इसलिए अहिंसा का अर्थ,केवल हिंसा न करना—इस प्रकार का निषेधात्मक ही नहीं होता, जीवरक्षा, करुणा, दया या सेवा करना, इत्यादि रूप में विधेयात्मक भी होता है। यही कारण है कि अहिंसा निवृत्ति-परक भी है और प्रवृत्तिपरक भी। __ अहिंसा के मुख्य भेद-अहिंसा के इस लक्षण को दृष्टिगत रखते हुए उसके मुख्य दो भेद बताए जाते हैं-द्रव्यअहिसा और भावअहिंसा । किसी भी प्राणी के .
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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