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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ६० निम्मलयरत्ति एवमादीणि निययगुणनिम्मियाई पज्जवनामाणि होति अहिंसाए भगवतीए ।। २१ ॥ . संस्कृतच्छाया तत्र प्रथममहिंसा या सा सदेवमनुजासुरस्य लोकस्य भवति द्वीपः (दीपः) त्राणं शरणं गतिः प्रतिष्ठा १ निर्वाणम्, २ निर्वृत्तिः, ३ समाधिः, ४ शक्तिः, ५ कीर्तिः, ६ कान्तिः,७ रतिश्च, ८ विरतिः, ६ श्रुतांगा, १० तृप्तिः, ११ दया, १२ विमुक्तिः, १३ क्षान्तिः, १४ सम्यक्त्वाराधना, १५ महती, १६ बोधिः, १७ बुद्धिः, १८ धृतिः, १६ समृद्धिः, १० ऋद्धिः, २१ वद्धिः, २२ स्थितिः, २३ पुष्टिः, २४ नन्दा, २५ भद्रा, २६ विशुद्धिः, २७ लब्धिः, २८ विशिष्टदृष्टिः, २६ कल्याणम्, ३० मंगलम्, ३१ प्रमोदः ३२ विभूतिः, ३३ रक्षा, ३४ सिद्धावासः, ३५ अनाश्रवः, ३६ केवलिनां स्थानम्, ३७ शिवम्, ३८ समितिः, ३६ शीलम्, ४० संयम इति च, ४१ शीलपरिगृहम्, ४२ संवरश्च, ४३ गुप्तिः, ४४ व्यवसाय:, ४५ उच्छ्यः , ४, यज्ञः, ४७ आयतनम्, ४८ यजनम् (यतनम्), ४ अप्रमादः, ५० आश्वासः, ५१ विश्वासः, ५२ अभयम्, ५३ सर्वस्यापि अमाघात:, ५४ चोक्षा, ५५ पवित्रा, ५६ शुचिः, ५७ पूजा (पूता), ५८ विमला, ५६ प्रभासा च,६० निर्मलतरेति-एवमादीनि निजकगुणनिर्मितानि पर्यायनामानि भवन्त्यहिंसाया भगवत्याः ॥ सू० २७ ॥ पदार्थान्वय-(तत्थ) उन पांचों में से, (पढम) पहला संवरद्वार (अहिंसा) अहिंसा है, (जा) यह (सा) वह पूर्वोक्त अहिंसा, (सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स) देवों, मनुष्यों और असुरों के सहित समग्र लोग जगत् के लिए (दीवो) शरणदायक द्वीप है अथवा दीपक सदृश प्रकाशक:, (भवति) है, (ताणं) रक्षा करने वाली है, (सरणं) शरण देने वाली है, (गती) श्रेयाथियों के लिए गति—गम्य है, प्राप्त करने योग्य हैं, (पइट्ठा) समस्त गुणों या सुखों का प्रतिष्ठान–प्रतिष्ठा है, यह अहिंसा (निव्वाणं) निर्वाण-मोक्ष का कारण है (निव्वुई) दुर्ध्यानरहित होने से मानसिक स्वस्थतारूप है, (समाही) समाधिरूप—समता का कारण है, (सत्ती) आत्मशक्ति का कारण है; अथवा (संती) परद्रोहविरतिरूप होने से शान्तिरूप है। (कित्ती) कीर्ति का कारण है, (कंती) सुन्दरता का कारण है, (य) और (रती) सबसे अनुराग-रतिप्रीति का कारण, (य) और (विरती) पाप से निर्वृत्तिरूप है, (सुयंग) श्रुतज्ञान ही इसका अंग-कारण है, (तित्ती) तृप्ति- संतोष का कारण है (दया) दयारूप है,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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