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________________ पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव ४६६ जिन्होंने आश्रवों का निरोध नहीं किया है, वे पुण्यहीन प्राणी नरक देव आदि सर्वगतियों में अनन्त (बार) गमनागमन करेंगे । कौन ? जो धर्म का श्रवण नहीं करते या धर्म श्रवण करके भी जो प्रमाद करते हैं ।।२।। जो मनुष्य मिथ्यादृष्टि हैं तथा निकाचित रूप से कर्म बांधे हुए हैं, वे अधम गुरुजनों द्वारा अनेक प्रकार से उपदेश दिये जाने पर धर्म श्रवण तो करते हैं, लेकिन उसका आचरण नहीं करते ॥३॥ जिनवचन तो समस्त दुःखों के नाश के हेतु गुणयुक्त मधुर विरेचन है, परन्तु निःस्वार्थ बुद्धि से दिए गये इस औषध को जो पोना नहीं चाहते, उनका वह क्या कर सकता है ? ॥४॥ अतः जो हिंसा आदि पांच आश्रवों को छोड़ कर और प्राणातिपातविरमण आदि पांच संवरों का भाव से पालन करके कर्मरज से सर्वथा मुक्त हो जाते हैं, वे सकंलकर्मों के क्षय से प्राप्त होने वाली उत्तम और सर्वश्रेष्ठ भावसिद्धि यानी सर्वोत्तम सिद्धि को पाते हैं ॥५॥ . इस प्रकार सुबोधिनी व्याख्यासहित पंचम अध्ययन अर्थात् परिग्रह आश्रव के रूप में पंचम और अन्तिम अधर्मद्वार समाप्त हुआ । ___ आश्रवद्वार सम्पूर्ण
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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