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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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परिग्रह बढ़ाया या सेवन किया जायगा, उतनी उतनी असंतुष्टि, अतृप्ति, बेचैनी, ऊब, अनिद्रा, अशान्ति, व्याकुलता, सुस्ती एवं निरुत्साहिता बढ़ेगी । ज्यों-ज्यों वस्तुओं का लाभ ( प्राप्ति ) बढ़ता है, त्यों-त्यों लोभ का बढ़ना स्वाभाविक है । अपनी इच्छा से ही उस लाभ पर कोई नियंत्रण कर ले, अल्पसाधनों से ही संतोष मान ले, तभी उसे तृप्ति और संतुष्टि हो सकती है ।
परिग्रह का स्वभाव — देव हो या मनुष्य, तिर्यञ्च हो या नारक, ऊपर-ऊपर से सबको परिग्रह - सुखसामग्री का ग्रहण अच्छा, रमणीय और आकर्षक लगता है । परन्तु पूर्वोक्त पाठानुसार परिग्रर अन्त में असंतुष्टि और अतृप्ति का कारण ही बनता है । इसीलिए शास्त्रकार परिग्रह के स्वभाव का वर्णन करते हुए कहते हैं- परिग्गहं" अनंतं, असरणं, दुरंतं, अधुवमणिच्चं, असासयं पावकम्मनेमं, विणासमूलं, वहबंधपरिकिलेसबहुलं अनंतसंकिलेसकारणं सव्वदुक्खसंनिलयणं । अर्थात् परिग्रह रमणीय नहीं है, वह दुःखद है, उसका अन्त नहीं, वह किसी को शरण देने वाला नहीं होता, उसका परिणाम सदा दुःखद होता है, वह स्वयं अस्थिर होता है, अनित्य और अशाश्वत होता है । परिग्रह पापकर्म का मूल है, विनाश की जड़ है, वध, वंध और संक्लेश से भरा हुआ है, परिग्रह के पीछे अनन्त क्लेश लगे हुए हैं । इसलिए परिग्रह सभी दुःखों का घर है । चक्रवर्ती, इन्द्र आदि भी परिग्रह का अन्त नहीं पा सके । वह समुद्र के समान अथाह है । वह अशाश्वत, अनित्य, अस्थिर या नाशवान इसलिए है कि जब तक आत्मा के कर्म भंडार में पुण्य-धन विद्यमान रहता है, तब तक उस पुण्यराशि से परिग्रहयोग्य पदार्थ प्राप्त किया जा सकता है, परन्तु जब पुण्य का खजाना खाली हो जाता है, तब प्राप्त हुआ धन, स्त्री, पुत्र या विविध साधन वगैरह का भी वियोग होने लगता है । इसलिए परिग्रह को विनाशशील कहा है । इसी प्रकार परिग्रह अन्त में दुःखदायी इसलिए है कि परिग्रह उपार्जन करने में प्रायः हिंसा आदि पाप होते हैं । पाप तो परिणाम में दु:खद होता ही है । परिग्रह के वियोग में भी दुःख होता है तथा परिग्रह परलोक में भी नरकादि के भयंकर दुःखों को उत्पन्न करने वाला है ।
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संसार के विविध दुःखों से घबराया हुआ आदमी अगर परिग्रह की शरण लेता है तो उसका हाल आग में जलते हुए व्यक्ति का मिट्टी के तेल की नाद में आश्रय लेने के समान हो जाता है । परिग्रह के कारण मारपीट, कैद, बंधन, मानसिक और शारीरिक क्लेश आदि का होना तो रोजमर्रा के अनुभव से सिद्ध है । जहाँ परिग्रह ज्यादा होता है, वहीं चोर, डाकू और लुटेरे वध करने, रस्सी 'या पेड़ आदि से बांधने के लिए तैयार होते हैं । इसलिए परिग्रह को अनन्त क्लेशों का कारण बताया है ।
परिग्रह के लिए विविध उपाय और उनसे होने वाले अनर्थ - मोहग्रस्त अज्ञानी जीव उभयलोक में दुःखजनक परिग्रह के लिए क्या-क्या उपाय अजमाता है