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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
ग्रहण करना चाहते हैं । (सदेवमणुयासुरम्मि लोए) देवों,मनुष्यों और असुरों के सहित स्थावरत्रसात्मक लोक में (जिणवरेहि। जिनेन्द्र भगवन्तों ने (लोभपरिग्गहो) लोभ रूप परिग्रह (भणिओ) कहा है । (एरिसो पासो नत्थि) इस परिग्रह के समान और कोई पाश-बंधन नहीं है । (सव्वलोए) सम्पूर्ण संसार में (सव्वजीवाणं) समस्त जीवों के लिए यह परिग्रह (पडिबंधो अत्थि) प्रतिबन्धक-राग, आसक्ति आदि का कारण है।
मूलार्थ-परिग्रह के लोभ में फंसे हुए, परिग्रह में रुचि रखने वाले भवनवासी देव और श्रेष्ठ विमानवासी देव ममत्त्वभाव रखते हैं। अविद्यमान परिग्रह को भी नाना प्रकार से अपनाने की बुद्धि वाले इन देवों के समूहनिकाय होते हैं। असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिक्कुमार, पवनकुमार, स्तनितकुमार, ये दस भवनवासी देव हैं तथा अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाकन्दित, कूष्मांड, और पतंगदेव ये व्यन्तरनिकाय के उच्चजाति के व्यन्तर देव हैं। तथा पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व, ये ८ महर्द्धिक एवं तिर्यग्लोक के निवासी व खासतौर से वनवनान्तर में निवास करने वाले वाणव्यन्तर देव हैं। इसी तरह तिर्यग्लोकवासी ५ प्रकार के ज्योतिषी देव हैं - वृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र
और शनिश्चर । इसी प्रकार राहु, धूम केतु, बुध और मंगल हैं । जो तपे हुए सोने के समान लाल हैं । तथा अन्य व्यालक आदि ग्रह हैं, जो ज्योतिश्चक्र में अपनी चाल से चलते हैं। गति में प्रीति रखने वाले केतु तथा २८ प्रकार के अभिजित् आदि नक्षत्र और ज्योतिषी देवगण हैं; विविध आकारों से युक्त तारा गण हैं। ये सब ज्योतिषदेव स्थिरदीप्ति वाले हैं ; यानी मनुष्यक्षेत्र (ढाई द्वीप और दो समुद्रों) से बाहर ज्योतिषदेव स्थिरलेश्या वाले–गतिरहित होते हैं और मनुष्यक्षेत्र के अन्दर के ज्योतिषदेव गतिसहित हैं. निरन्तर अपनेअपने मंडलों में गति करते हैं । तथा तिर्यग्लोक के ऊपर के भाग में रहने वाले ऊर्ध्वलोकनिवासी वैमानिक देव हैं। वे दो प्रकार के हैं—कल्पोपपन्न और कल्पातीत । सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत; ये उत्तम कल्पविमानों में निवास करने वाले कल्पोपपन्न देव हैं । नौ ग्रेवेयक तथा पंच अनुत्तर (विमान वासी) ये दोनों प्रकार के देवगण कल्पातीत होते हैं । ये सब विमान वासी देव महान् ऋद्धि वाले और सब देवों में श्रेष्ठ देव होते हैं।