________________
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
५
उदधिकुमार, दिक्कुमार, पवनकुमार, स्तनितकुमार, ये दस भवनवासी देव हैं तथा अणपनिक, पणपत्रिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड और पतंगदेव, ये व्यन्तरनिकाय के व्यन्तरविशेष हैं (य) तथा ( पिसायभूय- जक्खरक्खस- किनर - किंपुरिस - महोरग-गंधव्वा ) पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किम्पुरुष, महोरग और गन्धर्व ये महद्धिक व्यन्तरदेव हैं। ( तिरियवासी) तिर्यग्लोक में निवास करने वाले, खासतौर से वन-वनान्तर में निवास करने वाले वाणव्यन्तरदेव, (य) और ( पंचविहा) ५ प्रकार के ( जोइसिया देवा) ज्योतिष्क देव ( वहस्सती-चंदसूर-सुक्क सनिच्छरा ) वृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र और शनिश्चर (य) तथा ( राहु धूमकेउबुधा) राहु, धूमकेतु और बुध (य) और ( अंगारका) मंगल ( तत्ततवणिज्जकणयवण्णा) तपे हुए तपनीय – रक्तसोने के समान रंग के (घ) और (जे) जो अन्य, ( गहा ) ग्रह ( जो सम्मि) ज्योतिश्चक्र में (चारं चरंति) संचार - गति - गमन करते हैं अथवा अपनी चाल से चलते हैं । (य) और (गतिरतीया ) गति में रति- प्रीति रखने वाले (ऊ) केतु (य) तथा (अट्ठावीसतिविहा) २८ प्रकार के ( नक्खत्तदेवगणा) अभिजित् आदि नक्षत्र और ज्योतिषी देवगण हैं, (नाणासंठाणसंठियाओ) अनेक आकारों से युक्त (तारगाओ ) तारागण, ये (ठियलेस्सा) स्थिरलेश्या - दीप्ति वाले - अर्थात् मनुष्यक्षेत्र
बाहर के ज्योतिषदेव गतिरहित होते हैं । (य) तथा ( चारिणो ) मनुष्यक्षेत्र के अन्दर गमन करने वाले, ( अविस्साम मंडलगती ) विश्रामरहित - निरन्तर अपने-अपने मंडलों में गति करते हैं ।
४७२
.
(य) और ( उवरिचरा) तिर्यग्लोक के ऊपर के भाग में रहने वाले ( उड्ढलोकवासी) ऊर्ध्वलोक में निवास करने वाले (वेमाणिया) वैमानिक (देवा) देव ( दुविहा) दो प्रकार के होते हैं— कल्पोपपन्न और कल्पातीत ( सोहम्मीसाण- सणकुमारमाहिंद-बंभलोग लंतक - महासुक्क सहस्सार आणय-पाणय आरण अच्चुया) सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत (कप्पवरविमाणवासिगो) उत्तम कल्पविमानों में निवास करने वाले अर्थात् कल्पोपपन्न हैं । (गेवेज्जा) प्रवेयक और ( अणुत्तरा ) अनुत्तर ( दुविहा) ये दोनों प्रकार के ( सुरगणा) देवगण, ( कप्पातीया ) कल्पातीत हैं । (य) तथा (विमाणवासी) ये विमानवासी (महिड्डिया ) महान् ऋद्धि वाले ( उत्तमा) श्रेष्ठ (सुरवरा) सब देवों में उत्तम देव हैं । ( एवं ) इस प्रकार (ते) वे ( चउव्विहा सपरिसावि देवा) चार प्रकार की परिषद् के सहित देव भी, (ममायंति) ममता - मूर्च्छा करते हैं । (य) तथा ( भवण-वाहण - जाण - विमाण-सयणासणाणि) भवन, हाथी आदि वाहन,
·