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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
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कहलाता है । यहाँ द्रव्य से धन का तात्पर्य है । कई लोग जो अत्यन्त लोभी होते हैं, वे द्रव्य को ही जीवन का सर्वस्व मानते हैं । द्रव्य के लिए नीति, न्याय, धर्म, भाईबन्धुओं का स्नेह, पुत्रों के प्रति कर्त्तव्य, स्त्री के प्रति जिम्मेदारी, आदि सबको वे ताक में रख देते हैं । ऐसे लोग धन के लिए ईमानदारी–बेईमानी का कोई विचार नहीं करते; भक्ष्य-अभक्ष्य, पेय-अपेय की भी परवाह नहीं करते और न लोकविरुद्ध व्यवसाय-मांस की दूकान, मदिरालय, वेश्यालय, मुर्गी खाना आदि धंधों को अपनाने से परहेज करते हैं । येन-केन-प्रकारेण धन उनके पास आना चाहिए। धन के लिए वे किसी का गला घोंटने, किसी की हत्या करने या मारने-पीटने से नहीं चूकते। उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य धन कमाना होता है । क्योंकि वे धन को ही सुख का साधन, जीवन का निचोड़ समझते हैं। ऐसी द्रव्यसारता की वृत्ति परिग्रह-लालसा की द्योतक हैं । इसीलिए 'द्रव्यसार' को परिग्रह का पर्यायवाची ठीक ही कहा है।
'महिच्छा-असीम इच्छाओं का कारण महेच्छा कहलाती है। मनुष्य की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती। जब वह अनाप-सनाप इच्छाएँ मन में उठाता रहता है तो दूसरे किसी भी अच्छे कार्य, अपने धर्म, नियम, कर्तव्य या उत्तरदायित्व की ओर उसका ध्यान नहीं जाता। इच्छाएं परिग्रह को जन्म देती हैं । जो-जो इच्छारूपी तरंगें मन में उठती हैं, मनुष्य उन्हें पूरी करने के लिए हाथ-पैर मारता है, रात दिन इसी उधेड़ बुन में रहता है। उसे जीवन में अपनी कामनाओं को पूरा करने की धुन सवार होती है। कामनाएँ कभी पूरी होती नहीं । इस कारण वह अशान्त, हताश और निराश हो जाता है । इसलिए महेच्छा परिग्रह का कारण होने से एक तरह से परिग्रह की जननी है। ,
पडिबंधो'-किसी वस्तु के साथ बंध जाना, जकड़ा जाना प्रतिबंध कहलाता है । मनुष्य आसक्ति वश ही किसी चीज में बंधता है । जैसे भौंरा सुगन्ध के लोभवश कमल को भेदन करने की शक्ति होने पर भी कमल के कोश में बंद हो जाता है, इसी प्रकार स्त्री, मकान, दुकान, धन या पदार्थ अथवा पद के मोह में ऐसे जकड़ जाना कि उसे छोड़ने का सामर्थ्य होते हुए भी छोड़ना नहीं, उसके झूठे प्रेम में बंद हो जाना ही प्रतिबंध है । ऐसा प्रतिबंध मनुष्य की स्वतंत्रता की शक्ति को कुठित कर देता है । जैसे तोता पींजरे में बंद होकर अच्छे-अच्छे पदार्थ पाने के लोभ से अपनी स्वतंत्रता को भूल जाता है, वैसे ही किसी के प्रतिबन्ध में पड़ा हुआ मनुष्य भी अपनी स्वतंत्रता को भूल जाता है। इसलिए प्रतिबन्ध भी परिग्रह की तरह एक प्रकार का बन्धन है।
___ 'लोहप्पा-लोभ का स्वभाव-लोभवृत्ति लोभात्मा है । लोभवश ही वस्तुओं का संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है । लोभी वृत्ति वाला मनुष्य लोभ के वश दूसरों के