________________
पंचम अध्ययन : परिग्रह आश्रव
परिग्रह का स्वरूप ___ चतुर्थ अध्ययन-अब्रह्मचर्य आश्रव के रूप में चतुर्थ अधर्मद्वार का निरूपण करने के पश्चात् अब शास्त्रकार पंचम अध्ययन में परिग्रह-आश्रव के रूप में पांचवें अधर्मद्वार का निरूपण करते हैं। चूकि अब्रह्मचर्यसेवन परिग्रह के होने पर ही होता है। इसलिए शास्त्रकार अब क्रमशः परिग्रह का वर्णन प्रारम्भ करते हैं। शास्त्रकार अपनी निरूपणशैली के क्रम के अनुसार स्वरूप आदि पांच द्वारों में से सर्वप्रथम परिग्रह के स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं
मूलपाठ जंबू ! इत्तो परिग्गहो पंचमो उ नियमा णाणामणि-कणगरयण - महरिहपरिमल- सपुत्तदार-परिजण-दासी-दास-भयग-पेसहयगय-गो-महिस-उट्ट-खर-अय-गवेलग-सीया-सगड-रह-जाण-जुग्ग संदण-सयणासण-वाहण-कुविय-धण-धन्न-पाण-भोयणाच्छायण-गंधमल्ल-भायण-भवणविहिं चेव बहुविहीयं भरहं णग-णगर-णियमजणवय-पुरवर-दोणमुह-खेड-कव्वड- मडंब-संवाह-पट्टण-सहस्सपरिमंडियं थिमिय-मेइणीयं एगच्छत्तं ससागरं भुजिऊण वसुहं अपरिमियमणंततण्ह-मणु गय-महिच्छसार-निरय मूलो, लोभकलिकसायमहक्खंधो, चिंतासयनिचियविपुलसालो, गारवपविरल्लियग्गविडवो, नियडितयापत्तपल्लवधरो, पुप्फफलं जस्स कामभोगा,
आयासविसूरणा-कलहपकंपियग्गसिहरो, नरवतिसंपूजितो, बहुजणस्स हिययदइओ, इमस्स मोक्खवरमोत्तिमग्गस्स फलिहभूओ चरिमं अहम्मदारं ॥ सू० १७ ॥