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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य आश्रव ४२३ 1 खरदूषण का पुत्र शम्बुक बांसों के बीहड़ में एक वृक्ष से पैर बांधकर औंधे लटकते हुए चन्द्रहासखड्ग की एक विद्या सिद्ध कर रहा था । परन्तु उसकी विद्या सिद्ध न हो सकी। एक दिन लक्ष्मण ने आकाश में अधर लटकते हुए चमचमाते चन्द्रहासखड्ग को कुतूहलवश हाथ में उठा लिया और उसका चमत्कार देखने की इच्छा से उसे बांसों के बीहड़ पर चला दिया । संयोगवश खरदूषण और चन्द्रनखा के पुत्र तथा रावण के भानजे शम्बुककुमार पर वह तलवार जा लगी । बांसों के साथ-साथ उसका भी सिर कट गया। जब लक्ष्मणजी को यह पता लगा तो उन्हें बड़ा पश्चात्ताप हुआ । उन्होंने रामचन्द्रजी के पास जा कर सारा वृत्तान्त सुनाया । उन्हें भी बड़ा पश्चात्ताप हुआ। वे समझ गए कि लक्ष्मण ने एक बहुत बड़ी विपत्ति को बुला लिया है । जब शम्बुककुमार के मार डाले जाने का समाचार उसकी माता चन्द्रनखा को मालूम हुआ तो वह क्रोध से आगबबूला हो उठी और पुत्रघातक से बदला लेने के लिए उस पर्णकुटी पर आ पहुंची, जहां राम-लक्ष्मण बैठे हुए थे । वह आई तो थी बदला लेने, परन्तु वहाँ वह श्रीराम-लक्ष्मण के दिव्यरूप को देखकर उन पर मोहित हो गई । उसने बिद्या के प्रभाव से षोड़शी सुन्दर युवती का रूप बना लिया और कामज्वर से पीड़ित हो कर एक बार राम से तो दूसरी बार लक्ष्मण से कामाग्नि शान्त करने की प्रार्थना की। मगर स्वदार संतोषी परस्त्रीत्यागी राम-लक्ष्मण ने उसकी यह जघन्य प्रार्थना ठुकरा दी । पुत्र के वध करने और अपनी अनुचित प्रार्थना को ठुकरा देने के कारण चन्द्रनखा का रोष दुगुना भभक उठा । वह सीधी अपने पति खरदूषण के पास आई और पुत्रवध का सारा हाल कह सुनाया । सुनते ही खरदूषण अपनी कोपज्वाला से दग्ध हो कर वैर का बदला लेने हेतु सदलबल दंडकारण्य में पहुंचा। जब राम-लक्ष्मण को यह पता लगा कि खरदूषण लड़ने के लिए आया है तो श्रीलक्ष्मणजी उसका सामना करने पहुंचे। दोनों में युद्ध छिड़ गया । उधर लंकाधीश रावण को जब अपने भानजे के वध का समाचार मिला तो वह भी लंकापुरी से आकाश-मार्ग द्वारा दण्डकवन में पहुंचा । आकाश से ही वह टकटकी लगा कर बहुत देर तक सीता को देखता रहा । सीता को देख कर रावण का अन्तःकरण कामबाण से व्यथित हो गया । उसकी विवेकबुद्धि और धर्मसंज्ञा लुप्त हो गई । अपने उज्ज्वल कुल 'के' कलंकित होने की परवाह न करके दुर्गतिगमन का भय छोड़ कर उसने किसी भी तरह से सीता का हरण करने की ठान ली । सन्निपात के रोगी के समान कामोन्मत्त रावण सीता को प्राप्त करने के उपाय सोचने लगा । उसे एक उपाय सूझा। उसने अपनी विद्या के प्रभाव से जहां लक्ष्मण संग्राम कर रहा था, उस ओर जोर से सिंहनाद की ध्वनि की । श्रीराम यह सिंहनाद सुन कर चिन्ता में पड़े कि लक्ष्मण भारी विपत्ति में फंसा है, अतः उसने मुझे बुलाने को यह पूर्वसंकेतित सिंहनाद किया है । इसलिए वे सीता को अकेली छोड़ कर तुरन्त लक्ष्मण की सहायता के लिये चल पड़े ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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