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________________ ३८४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पहट्ठभमरगण-निद्ध-निगुरुंब-निचिय-कुचिय - पयाहिणावत्तमुद्धसिरया) उनके मस्तक के बाल सेमर के फल के समान घने, छांटे हुए या मानो घिसे हुए, बारीक, स स्पष्ट, प्रशस्त-मांगलिक, चिकने, उत्तम लक्षणों से युक्त, सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित, सुन्दर, भुजमोचकरत्न के समान काले, नीलमणि और काजल के समान तथा हर्षित भौरों के झुड की तरह कृष्णकान्ति वाले, झुडरूप में इकट्ठे और टेढ़े मेढ़े घुघराले, दक्षिण की ओर धूमे हुए होते हैं। (सु जाय-सु विभत्त-संगयंगा). उनके अंग बड़े ही सुडौल, योग्यस्थान पर और सुन्दर होते हैं। (लक्खणवंजणगुणोववेया) वे उत्तमोत्तम लक्षणों व तिल, मस्सा आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त होते हैं। (पसत्थबत्तीसलक्खणधरा) वे मांगलिक बत्तीस लक्षणों के धारक होते हैं। हंसस्सस) उनका स्वर हंस के समान होता है, (कुंचस्सरा) वे कोंचपक्षी--कुररी के समान आवाज वाले होते हैं, (दुंदुभिस्सरा) वे दुंदुभि की ध्वनि के सयान ध्वनि वाले होते हैं, (सोहस्सरा) वे सिंहगर्जना के समान आवाज वाले होते हैं। (ओघस्सरा) बिना फटे हुए या बिना रुके हुए स्वर के समान स्पष्ट स्वर वाले होते हैं। (मेघस्सरा) उनकी आवाज बादलों के गर्जन के समान होती है, (सुस्सरा) उनकी आवाज कानों को सुखद एवं प्रिय होती है; (सुस्सरनिग्घोसा) वे अच्छे स्वर और अच्छे निर्घोष वाले होते हैं (वज्जरिसहनारायसंघयणा) वे वज्रऋषभनाराच संहनन वाले होते हैं, . (समचउरंसस ठाणसठिया) उनका शरीर समचतुरस्र संस्थान से गठा हुआ होता है, (छायाउज्जोवियंगमंगा) उनके अंग-प्रत्यंग कान्ति से चमकते रहते हैं। (पसत्थच्छवी) उनके शरीर की चमड़ी-त्वचा श्रेष्ठ होती है , (निरातका) वे नीरोग रहते हैं। (कंकग्गहणी) कंक नामक पक्षी के समान वे अल्प आहार ही ग्रहण करते हैं। (कवोत-परिणामा) कबूतर की तरह उनमें आहार की परिणति पचाने-हजम करने को शक्ति होती है । (सउणिपोसरिठंतरोरूपरिणया) पक्षी के समान उनका मलद्वार अपानमार्ग होता है, जिससे वे मलत्याग करने के बाद उसके लेप से रहित रहते हैं । तथा उनकी पीठ,पार्श्वभाग और जंघाएँ परिपक्व होती हैं । (पउमुप्पलसरिसगंधुस्साससुरभिवयणा) पद्म कमल और नीलकमल के सरीखी सुगन्ध से उनके श्वास और मुख सुगन्धित रहते हैं। (अणुलोमवाउवेगा) उनके शरीर की वायु का वेग अनुकू ल-मनोज्ञ रहता है । (अवदायनिद्धकाला) निर्मल और चिकने काले बाल उनके सिर पर होते हैं । (विग्गहियउन्नतकुच्छी) उनका पेट शरीर के अनुरूप उन्नत-ऊँचा व मोटा होता है। (अमयरसफलाहारा) वे अमृत के समान रसयुक्त फलों का
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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