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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रय ३८३ संनिभाधरोहा) उनके नीचले ओठ संशोधित मूगे और बिबफल के समान लाललाल होते हैं । (पंडुर-ससि-सकल-विमल-संख-गोखीर-फेण-कुद-दगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी) उनके दांतों को पंक्ति सफेद रंग के चन्द्रमा के टुकड़े, निर्मल शंख, गाय के दूध, समुद्र फेन, कुद पुष्प, जलकण तथा कमल की नाल के समान धवल-सफेद होती हैं । ( अखंडदंता ) उनके दांत अखंड होते हैं, (अप्फुडियदंता) बिना टूटे हुए होते हैं, (अविरलदंता) वे घने दतों वाले, (सुणिद्धदंता) चिकने दांतों वाले,(सुजायदंता) सुदर दांतों वाले, और (एगदंतसेढिव्व अणेगदंता) वे एक दांत की पंक्ति के समान अनेक-बत्तीस दांतों वाले होते हैं। (हुयवह-निद्धत-धोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्ततलतालुजीहा) उनके तालु और जीभ आग में तपाये हुए तथा धोए हुए निर्मल सोने के समान लाल तल वाले होते हैं। (गरुलायत-उज्जु-तुंगनासा) उनकी नाक गरुड़ के समान लंबी, सीधी और ऊँची होती है। (अवदालिय-पोंडरीय-नयणा) उनके नेत्र खिले हुए श्वेत कमल के समान होते हैं, (कोकासियधवलपत्तलच्छा) तथा विकसित सफेद पक्ष्म-पपनी से युक्त भी होते हैं । (आणामिय-चाव-रुइल-किण्हब्भराजि-संठिय-संगयायय-स जायभुमगा) उनकी भोंहें थोड़े से झुकाये हुए धनुष के समान मनोरम, एक जगह जमे हुए काले-काले बादलों की रेखा के समान काली,उचित मात्रा में लंबी और सदर होती हैं । (अल्लीणपमाण-जुत्तसवणा) उनके दोनों कान एक जगह टिके हुए, उचितप्रमाणयुक्त पंखे के समान होते हैं। (स सवणा) वे सन्दर कानों वाले अथवा अच्छी तरह सुनने की शक्ति से युक्त होते हैं । (पोणमंसलकपोलदेसभागा) उनके दोनों गाल तथा आसपास के भाग परिपुष्ट, और मांस से भरे हुए होते हैं। (अचिरुग्गयबालचंदसंठियमहानिडाला) उनके ललाट थोड़े ही समय पहले नवीन उदय हुए बालचन्द्रमा के आकार के समान विशाल होते हैं। (उडुपतिपडिपुन्न-सोम-वयणा) उनके मुख पूर्ण चन्द्रमा के समान सौम्य होते हैं । (छत्तागारुत्तमांगदेशा) छाते के आकार के समान उभरा हुआ उनका मस्तक का भाग होता है। (घण-निचिय-सु बद्ध-लक्खणुन्नयकूडागार-निभ-पिडियग्गसिरा) उनके सिर का अग्रभाग लोहे के मुद्गर के समान ठोस–स दृढ, नसों से आबद्ध, उत्तम लक्षणों से युक्त, उन्नत--उभरा हुआ, शिखरसहित भवन के समान और गोलाकार पिंड के समान होता है। (हुयवहनिद्धतधोयतत्ततवणिज्जरत्तकेसंतकेसभूमी) उनके मस्तक की चमड़ी अग्नि में तपाये और धोये हुए तप्त सोने के समान लाल-लाल तथा सिरे पर बढ़े हुए बालों से युक्त होती है । (सामलीपोंडघण-निचियछोडिय-मिउ-विसय-पसत्थ-स हम-लक्खण-स गंधि- सौंदर-भु य-मोयग-भिग-नील-कज्जल
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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