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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव पर आधिपत्त्य साहस के बिना नहीं हो सकता। इन दोनों महापुरुषों में असाधारण साहस था ; तभी तो ब्रजभूमि में जमे-जमाए साम्राज्य को एक दिन छोड़ कर ठेठ सुदूर समुद्र तट पर द्वारिका में उन्होंने अपने साम्राज्य की नींव डाली । साहस और अध्यवसाय ने उनके जीवन को चमका दिया। अन्यथा, केवल ग्वालों के साथ गोकुल में रह कर वे कभी इतना विराट कार्य नहीं कर सकते थे। (४) दयावान—दया के बिना दूसरों की सहानुभूति और आशीर्वाद मनुष्य नहीं पा सकता और बिना सहानुभूति और आशीर्वाद के मनुष्य अपने जीवन का सर्वांगीण विकास नहीं कर सकता। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में जराजर्जर उपेक्षित वृद्ध की ईंट उठाने जैसी सहायता करने के अनेक कार्य किये हैं । वे जहाँ भी निर्बल को सबल द्वारा सताता देखते ; वहीं अड़ जाते और उसे न्याय दिलाते । इसलिए दया का गुण बहुत आवश्यक है। (५) अमात्सर्य-किसी के भी विशिष्ट गुण, कार्य या पराक्रम को देख कर उनके मन में मत्सर, डाह, ईर्ष्या या तेजोद्वेष नहीं पैदा होता था। वे दूसरे के गुण आदि को देख कर प्रसन्न होते थे, गुणग्राही होते थे। (६) अचंचलता-चंचलता छिछोरपन का चिह्न होता है । जो व्यक्ति महान् होता है, उसमें गंभीरता होती है, चंचलता नहीं। बात-बात में तुनुकमिजाजी, चंचलता या चपलता जीवन के कई कार्यों को बिगाड़ देती है। इसीलिए बलदेववासुदेव में इस गुण का होना आवश्यक है। (७) अचंडा-बात-बात में क्रोध करना उच्छृखलता की निशानी है । महान् व्यक्ति सहसा कुपित नहीं होते। वे गंभीरता से हर बात को सोचते हैं, सहसा निर्णय नहीं देते और न सहसा गर्म हो कर उबल पड़ते हैं। इसलिए उनमें बिना कारण कभी क्रोध पैदा नहीं होता । शिशुपाल के द्वारा अनेक गलतियां की जाने पर भी श्रीकृष्णजी ने उन्हें काफी देर तक क्षमा किया ; वे शीघ्र कुपित नहीं हुए। (E) हित-मित-मधुरभाषी-वाणी मनुष्य के जीवन की क्षुद्रता और महानता का परिचय करा देती है। बलदेव-वासुदेव की वाणी नपीतुली, मधुर और हितकर होती है। वे बिना कारण कभी किसी पर प्रकोप नहीं करते। दुर्योधन के द्वारा किये गए दुर्व्यवहार के समय भी वे शान्तिदूत बन कर उसकी राजसभा में गए थे। अपमान किये जाने पर भी उन्होंने शान्त संयत शब्दों में ही उत्तर दिया। मूसकरा कर कड़वी बात का जवाब मीठे शब्दों में देने की क्षमता इन उत्तम पुरुषों में होती है। (8) वात्सल्य-वात्सल्य का गुण ऐसा है, जो पराये से पराये व्यक्ति को भी सदा के लिए अपना बना लेता है। वात्सल्य बरसाने वाले व्यक्ति के सभी
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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