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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ३५७ ६ छत्र, १० चर्म, ११ मणि, १२ काकिणी, १३ खड्ग और १४ दंड ; ये सात अचेतन रत्न हैं। इस प्रकार चक्रवर्ती इन चौदह रत्नों का स्वामी होता है । चक्रवर्ती का प्रथम रत्न सेनापति होता है, जिसकी शक्ति शत्रुओं से अबाधित होती है और जो गंगासिन्धु आदि नदियों को पार करके विजय प्राप्त कराने में समर्थ होता है। दूसरा गृहपतिरत्न है, जो गृहोचित शाली आदि सभी प्रकार के धान्य, फल, सागभाजी तत्काल उत्पन्न करने में और चक्रवर्ती की सारी सेना को खाने-पीने की तमाम चीजें मुहैया करने में समर्थ होता है। तीसरा रत्न पुरोहित होता है, जो समस्त क्षुद्र उपद्रवों को शान्त करता है । चौथा और छठा रत्न घोड़ा और हाथी होता हैं, ये दोनों अत्यन्त वेग और पराकम वाले होते हैं। पांचवा बढई रत्न होता है ; जो देखते ही देखते सारी सेना के लिए भवन बनाने, उनको सुसज्जित करने तथा बात की बात में कठिन से कठिन ऊबड़खाबड़ स्थानों पर रास्ता आदि बना देने में समर्थ होता है । सातवाँ स्त्रीरत्न समस्त उत्तमोत्तम कामसुखों का खजाना होता हैं। आठवाँ चक्ररत्न हजार आरों का लम्बा-चौड़ा, समस्त शस्त्रों में प्रधान अमोघ शस्त्र होता है । नौवां विशाल लम्बा-चौड़ा छत्ररत्न होता है ; जो ६६ हजार लोहे की सलाइयों (ताड़ियों) से गूंथा हुआ व सोने के बने हुए प्रचंड दंड से सुशोभित होता है, जो धूप, वर्षा, लू आदि दोषों का नाशक होता है, और स्वामी के हाथ का स्पर्श होते ही १२ योजन तक फैल कर, बैताढ्यपर्वत के उत्तरभाग में रहने वाले म्लेच्छों के अनुरोध से मेघकुमार द्वारा बरसाई हुई जलधाराओं का निवारण करता है। दसवां चर्मरत्न होता है, जो होता तो है दो हाथ का ही ; लेकिन वैताढ्यपर्वत के उत्तर में रहने वाले म्लेच्छों द्वारा कराई हुई मूसलधार वर्षा होने पर स्वामी के हाथ का स्पर्श होते ही १२ योजन तक विस्तृत हो जाता है। चक्रवर्ती की सारी सेना को आकाश में ऊपर से तो छत्ररत्न ढक देता है, जबकि नीचे से चर्मरत्न पृथ्वी की तरह उसे आधार देने में और प्रातःकाल बोने पर अपराह्न में शाली आदि अन्न उपजा देने में समर्थ होता है । ग्यारहवां मणिरत्न चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा तिकोन और छह पहलू वाला वैडूर्यमय होता है, जो छत्र के ऊपरी सिरे पर और हाथी के कंधे पर लगा होता है । वह १२ योजन तक प्रकाशक होता है, क्षुद्र उपद्रवों को मिटा देता है । उसको हाथ में रखने पर यौवन स्थायी रहता है. केश और नख भी टिके रहते हैं । बारहवाँ काकिणीरत्न होता है जिसके आठों पहलू स्वर्णजटित होते हैं। वह चार अंगुल का समचौरस और समस्तविद्याओं का अपहर्ता होता है। वह तिमिस्रागुफा और खंडप्रपातगुफा में १२ योजन तक अंधेरा मिटा देने वाला होता है। चक्री द्वारा रात को सेना के बीच में रख देने पर सूर्य की तरह प्रकाश देता है । तमिस्रागुफा में पूर्व और पश्चिम की प्रत्येक दीवार पर एक योजन दूर तक और ५०० धनुष लम्बाई-चौड़ाई
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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