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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र सत्कार करते हैं। उनके लिए वे अपने-अपने देश की सुन्दर से सुन्दर वस्तुएँ और अंगनाएं भेंट में भेजते हैं। जैसे स्वर्गलोक में इन्द्र अनेक मनोहर और प्राकृतिक दृश्य वाले स्थानों में जा कर क्रीड़ा करता है, वैसे ही ये भी पर्वतों, प्राकृतिक दृश्यों, झरनों, मनोहर लताकुजों, मनोज्ञ नगरों, जनपदों आदि स्थानों में अपनी विविध सवारियोंद्वारा जा पहुंचते हैं और वहाँ अनुकूल समय में चित्ताकर्षक क्रीड़ाएं करते हैं। कई बार समुद्र या बड़ी-बड़ी नदियों के समीपवर्ती स्थानों में जलमार्ग या स्थलमार्ग द्वारा पहुंच कर अभीष्ट सुखों का उपभोग करते हैं। कभी मन में आया तो धूल के कोट.वाली बस्तियों, कस्बों, गाँवों या बस्ती से दूर ऐसे एकान्तस्थानों में जा पहुंचते हैं । कभी ऐसे स्थानों में जा कर अपनी महफिल जमाते हैं ; जहाँ सुरक्षा के लिए अनाज व अन्य सामग्री का प्रबन्ध पहले से होता है। किसी समय रत्नों का जहाँ व्यापार होता है, ऐसे पत्तनों में पहुंच कर मन को प्रफुल्लित करते हैं। मतलब यह है कि विविध साधनों से और भांति-भांति के तौरतरीकों से शब्दादिविषयों का पुनः पुनः सेवन करने पर भी वे कामभोगों से तृप्त नहीं होते और अन्त में कामभोगों की इच्छा करते-करते हो काल के गाल में पहुंच जाते हैं। . चक्रवर्ती का वैभव-शास्त्रकार षट्खंडाधिपति चक्रवर्ती के वैभवविलासों का निरूपण करते हुए कहते हैं-'एगच्छत्तं ससागरं भुजिऊण वसुहं " भज्जाहिं य जणवयप्पहाणाहिं लालियंता "अवितित्ता कामाणं।' इस लम्बे पाठ का वर्णन बहुत ही स्पष्ट है। ये सम्पूर्ण भरतक्षेत्र के स्वामी होते हैं , तीनों और अमुद्र . तक और उत्तर में हिमवान पर्वत तक इनका अखंड राज्य होता है। बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा सिर झुका कर उनकी आज्ञा को स्वीकार करते हैं। विशेष बात यह है कि मूलपाठ में वर्णित नाना प्रकार की अगणित भोगसामग्रियों के अलावा उनके अकेले के ६४ हजार पत्नियाँ होती हैं, जो उन्हें देख कर अपने नेत्रों को आनन्दित करती हैं । चक्रवर्ती का सारा दारोमदार चक्र आदि १४ रत्नों पर होता है। चक्रवर्ती को ६ खंडों पर विजय प्राप्त कराने में तथा चक्रवर्ती पद प्राप्त कराने में ये सहायक होते हैं। खान से निकला हुआ पदार्थविशेष यहाँ रत्न नहीं कहलाता, अपितु जिस-जिस जाति की जो-जो श्रेष्ठ वस्तु होती है, उसे ही रत्न कहा जाता है। चक्रवर्ती के १४ रत्न होते हैं । जो निम्नोक्त गाथा से प्रगट हैं 'सेणावइ १ गाहावइ २ पुरोहिय ३ तुरग ४ वड्ढइ ५। गय ६ इत्थी ७ चक्कं ८ छत्त ६ चम्मं १० मणि ११, कागणि १२ खग्ग १३ वंडो य १४॥' अर्यात् १ सेनापति, २ गाथापति (स्थपति), ३ पुरोहित, ४ अश्व, ५ बढई, ६ हाथी, ७ स्त्रीरत्न, ये सात (पंचन्द्रिय) सचेतन (सजीव) रत्न हैं ; तथा ८ चक्र,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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