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तृतीय अध्ययन : अदत्तादन-आश्रव
___ एवं तं ततियं पि अदिन्नादाणं "दुरंत'—इस सूत्रपाठ का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार अदत्तादान की भयंकरता और अशान्ति-दुःखप्रदता बता कर पुन: विवेक जगाते हैं । यह शास्त्रकार का पुनरुक्तिदोष न समझ कर आप्तपुरुष द्वारा अपने स्वजन को बार-बार समझाने के समान संसारी प्राणियों के लिए बार-बार दिया गया हितोपदेश समझना चाहिए।
इस प्रकार श्री प्रश्नव्याकरणसूत्र की सुबोधिनी व्याख्या सहित तीसरे अधर्मद्वार के रूप में अदत्तादान आश्रव नामक तृतीय अध्ययन पूर्ण हुआ।