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________________ - ३० - . ६७ . ६७ ७७ ८२ س जीवों के भेद और नाम बताने का प्रयोजन जीव का लक्षण और उनमें चेतना का प्रमाण चेतना के विकास का तारतम्य प्राणिवध करने के प्रयोजनों या कारणों पर विचार हिंसा के पीछे प्रेरणा हिंसकों द्वारा हिंसा किस स्थिति में की जाती है ? हिंसा के कर्ता और उसके दुष्परिणाम हिंसकों की तीन मुख्य कोटियां हिंसा का भयंकर दुष्परिणाम नरकभूमियाँ कहाँ और कौन-कौन-सी हैं ? नरक के अस्तित्व की सिद्धि नरक की इतनी भयंकर दण्डयातना वास्तविकता है, गप्प नहीं नरकगति में हिंसा के कुफल कटुफल का कारण और उसे भगवाने वाला कर्म और उनके बन्ध के प्रकार नारकों की लम्बी स्थिति की तालिका नरकपालों द्वारा नारकों को दी जाने वाली यातनाएं नारकों द्वारा परस्पर दिये जाने वाले दुःख विक्रिया द्वारा शस्त्रादि निर्माण क्यों और कैसे ? नरक भूमियों में क्षेत्रकृत दुःख तीनों प्रकार के दुःखों की नारकों पर प्रतिक्रिया तियंचगति और मनुष्यगति में हिंसा के कुफल फल भोगते समय पश्चात्ताप तिर्यंचयोनि का स्वरूप तियंचयोनि में प्राप्त होने वाले दुःख विविध दुःखों से पीड़ित तिर्यंचों द्वारा नये दुःखदायक कर्मों का उपार्जन कर्मों के अतिसंचय के कारण तिर्यंचयोनियों की कुलकोटियाँ विकले न्द्रिय और एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनियों के दुःख एकेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेद और स्पष्टीकरण एकेन्द्रिय पर्याय में प्राप्त होने वाले दुःख १०२ १०३ १०४ १०५ ११६ १२० १२० १२१ १२३ १२५
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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