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________________ २७० श्री प्रश्नव्याकरथ सूत्र करने वाले, चोरबाजारी करने वाले, करचोरी करने वाले तथा सरकारी खजाने आदि को ल्ट लेने वाले लोग भयकर चोरों की कोटि में हैं। विसयनिच्छूढलोकवज्झा—देश, जाति या समूह से निष्कासित, लोकविरुद्ध निन्दित आचरण करने वाले लोग भी चोरी, डकैती या लूट का धंधा अपना लेते हैं। इस पद से उनका संकेत किया गया है। उद्दोहक-गामघायक-पुरघायग-पंथघायग-आवीलग-तित्थभया-जो लोग चोरी के लिए विविध प्रकार की साहसिक हिंसा का तरीका अपनाते हैं, उनका संकेत इस पद से किया गया है । ऐसे लोग, जो जंगल आदि जला डालते हैं, गाँव, नगर, यात्रीजन आदि की हत्या करके लूट लेते हैं तथा विविध प्रकार की यातनाएं देकर धनहरण कर लेते हैं अथवा तीर्थयात्रियों को घेर कर उन्हें मारपीट कर उनसे धन छीन लेते हैं; ये सभी चोर हैं। लहुहत्थसंपउत्ता ' ' परस्स दव्वाहि जे अविरया-इन सबका अर्थ पहले स्पष्ट कर दिया गया है। इनमें उन सब लोगों का समावेश कर दिया गया है, जो परद्रव्यहरण (चोरी) के त्याग से विरत नहीं हैं। यानी जिसने अचौर्यव्रत धारण नहीं किया है, वह हाथ की सफाई से, जुआ खेल कर, रिश्वत ले कर, कर वसूल करने में गड़बड़ करके, स्त्री, पुरुष, या और किसी का वेष बनाकर, जेब कोट कर, वशीकरण मंत्र-तंत्र आदि से अथवा बालक का अपहरण करके, सेंध लगाकर, मारपीट कर या सता कर चोरी करता है। अथवा वह गुप्तरूप से गाय, घोड़ा, दासी का हरण कर लेता है। कई लोग स्वयं चोरी नहीं करते, लेकिन चोरी करने वालों को सहायता दे कर चोरी में साझेदार बनते हैं, कई यात्रि संघों को लूट लेते हैं या विश्वास पैदा करके ठग लेते हैं कई लोग जेलखाने से भाग कर चोरी का रास्ता अपनाते हैं। ऐसे अदत्तादान से अनिवृत्त लोगों का दिमाग हमेशा चोरी करने में ही लगा रहता है। विपुलबलपरिग्गहा ... अभिभूय हरंति परधणाई-पराये धन में आसक्ति रखने वाले राजा लोग कैसे चोरी करते हैं ? उनकी मनोवृत्ति तथा धनहरण करने का तरीका यहाँ सूचित किया गया है कि ऐसे शासक परधन को अपने कब्जे में करने के लिए बड़ी भारी चतुरंगिणी सेना सजा कर व्यवस्थित ढंग से दूसरे शासक पर या दूसरे के राज्य, कोष आदि पर आक्रमण करके सारा धन या राज्य अपने कब्जे में कर लेते हैं। अवरे रणसीसलद्धलक्खा " परविसए अभिहणंति-इस लम्बे वाक्य से ऐसे चोरों का संकेत किया है, जो बहुत पैसा खर्च करके व्यवस्थित ढंग से एक विशाल सेना को युद्ध की तालीम दे कर तैयार करते हैं और उस सेना को लड़ा कर दूसरे देश के राज्य पर कब्जा कर लेते हैं । इतने लम्बे वाक्य में सैन्य-संचालन, व्यूहरचना एवं युद्धकला
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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