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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान-आश्रव नाचते हुए अनेक सिरकटे धड़ों पर कौए और गिद्ध मंडरा रहे हैं और वे झुड के झुड जब घूमते हैं तो उनकी छाया के अंधकार से वह गम्भीर हो रहा है। ऐसे युद्ध में वे केवल सेना को ही नहीं लड़ाते, बल्कि स्वयं भी प्रवेश करते हैं, मानो देवलोक (आकाश) और इस पृथ्वी को कंपाते हुए पराये धन के लिए लालायित वे राजा लोग साक्षात् श्मशान के समान,अत्यन्त रौद्र होने के कारण भयानक और अत्यन्त कठिनाई से प्रवेश करने योग्य इस संग्रामरूपी घने वन में आगे हो कर प्रवेश करते हैं। ... दूसरे पैदल चोरों के दल और चोरों के दल के प्रवर्तक-सेनापति वन्य प्रदेशों में खोह, गुफा, बीहड़ या जलीय-स्थलीय दुर्गम स्थानों में निवास करते हैं । काले, हरे, लाल, पीले, सफेद आदि सैंकड़ों रंग-बिरंगे चिह्नपट्ट (बिल्ले या. चपरास) बांधे हुए वे दूसरे देशों यानी राज्यों पर सहसा धावा बोल देते हैं । लालची बन कर धन के लिए वे रत्नों के खजाने वाले समुद्र पर चढ़ाई कर देते हैं। जो हजारों तरंगों की मालाओं से व्याप्त है. पेय जल के अभाव में जहाज के व्याकुल मनुष्यों के कलकल से युक्त है, हजारों पातालकलशों की हवा के कारण तेजी से ऊपर उछलते हुए जलकणों की की रज से जो अंधकारमय है, निरन्तर प्रचुर मात्रा में उठने वाला सफेद फेन ही जिसका अट्टहास है, जहाँ हवा के थपेड़ों से पानी क्षुब्ध हो रहा है, जलकल्लोलमालाएँ अत्यन्त वेग वाली हो रही हैं, चारों ओर तूफानी हवाओं से क्ष ब्ध है, किनारे पर टकराते हुए जलसमूह से तथा मगरमच्छ आदि जलजन्तुओं से अत्यन्त चंचल है, अपने बीच में निकले हुए पर्वत आदि से टकराते व बहत हुए अथाह जलसमूह से जो युक्त है, गंगा आदि महानदियों के वेग से शीघ्र लबालब भर जाने वाला है, जिसके गहरे अथाह भवरों में चपलतापूर्वक भ्रमण करते, व्याकुल होत, ऊपर उछलत और नीचे गिरते हुए जलसमूह हैं या जलजन्तु हैं, तथा जो वेगवान एवं अत्यन्त कठोर प्रचण्ड, क्षुब्ध जल में से उठती हुई लहरों से व्याप्त है । बड़े-बड़े मगरमच्छों कछुओं, ओहार नामक जलजन्तुओं, घडियालों, बड़ी मछलियों, सुसुमार और श्वापद नामक जलजन्तुविशेषों के परस्पर टकराने और एक दूसरे को निगलने के लिए दौड़ने से जो प्रचुर घोर बना हुआ है; जो कायरजनों के हृदय को कंपा देने वाला है, अत्यन्त भया
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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