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________________ तृतीय अध्ययन : अदत्तादान - आश्रव २३६ चुरा कर भाग जाना या नष्ट-भ्रष्ट कर देना, १५ - बिना आज्ञा के परद्रव्यग्रहण करना, १६ – दूसरे के धन या वस्तु को गायब कर देना, १७ - अविश्वास का कारण, १८ - परपीड़ाकारक. १६ - पराये धन पर झपटना, २० – दूसरों के हाथ से द्रव्य छीनना, २१ – दूसरों के हाथ से द्रव्य छीन कर खुर्द-बुर्द कर देना, २२ तौलने - नापने के उपकरणों में बेईमानी करना, २३ – कुल में कलंक लगाने का कारण, २४ – दूसरे के द्रव्य की अभिलाषा करना, २५ लल्लोचप्पो करके दूसरों से अर्थ की याचना करना, २६ – पराई वस्तु को नष्ट करने की बुरी आदत, २७ - पराये धन की इच्छा करना और उसमें गाढ़ आसक्ति रखना, २८ - प्राप्त द्रव्य को खर्च न करने की इच्छा और अप्राप्त द्रव्य को पाने की लालसा, २६ -- मायाचार ( जालसाजी ) से किया हुआ कर्म, ३० – परोक्ष में ( दूसरे की आँख बचा कर ) किया जाने वाला काम । इस तरह पापकर्म और कलह से होने वाले मलिन कामों से भरे हुए अदत्तादान के ये तीस नाम हैं तथा ऐसे और भी अनेक नाम हैं । व्याख्या अदत्तादान के ३० गुणनिष्पन्न सार्थक नाम का अर्थ हम स्पष्ट कर आए हैं, लेकिन सार्थकता सिद्ध करने की दृष्टि से यहाँ कुछ प्रस्तुत मूलपाठ में शास्त्रकार ने बताये हैं। वैसे तो मूलार्थ में प्रत्येक अदत्तादान के इन पर्यायवाची नामों की विश्लेषण करना अप्रासंगिक नहीं होगा । चोरिक्कं – किसी वस्तु को, चाहे वह मार्ग में ही पड़ी हो, कोई भूल से छोड़ गया हो, असावधानी से गिरी हुई हो; उसके स्वामी की आज्ञा या इच्छा के बिना अपने कब्जे में कर लेना चोरी है । यहाँ शंका हो सकती है कि कुँए आदि जलाशय से पानी, हाथ आदि साफ करने के लिए मिट्टी, दाँत आदि साफ करने के लिए तौन की लकड़ी, किसी कार्य के लिए तिनका आदि चीजें उनके स्वामी की आज्ञा के बिना भी ग्रहण की जाती हैं, किसी शासक से बिना पूछे उसके राज्य में नगर, गली या मुहल्ले में प्रवेश किया जाता है, क्या यह भी चोरी ही कही जायगी ? इसका समाधान यह है कि प्रथम तो जिस चीज का कोई स्वामी नहीं होता या जो चीज सार्वजनिक होती है या उसका मालिक सभी के उपयोग के लिए उसे खुली (मुक्त) कर देता है, जिसे ग्रहण करने से या जिसका उपयोग करने पर लोकव्यवहार में कोई निन्दा नहीं होती, जिसके लिए निषेधाज्ञा जारी करके सरकारी कानून नहीं बना है, अतः सरकार उसे दण्ड नहीं देती; जिसे ग्रहण या उपयोग करने के पीछे अपने अधीन बनाने की
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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