SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४ ) भी अवतरित हुई । आचार्य देव के साहित्यनिर्माण में भी पण्डित जी का बहुमूल्य योगदान है । उन की बौद्धिक सेवा आचार्य देव के साहित्य के साथ चिरस्मरणीय रहेगी । प्रस्तुत प्रश्न व्याकरण का सम्पादन एवं विवेचन भी विद्वान् मुनि श्री जी ने अपने गुरुदेव आचार्यश्री जी के चरणचिन्हों पर ही रूपायित किया है। वही मूल, संस्कृत च्छाया, पदार्थ, मूलार्थ और व्याख्या । वही सरल सुबोध भाषा और वही भावधारा । लगता है, जैसे गुरु की प्रतिभाज्योति शिष्य में संक्रान्त हो गई है। योग्य शिष्य में गुरु की आत्मा प्रतिबिम्बित होती ही है । मेरे शिष्यवत् श्रद्धासिक्त स्नेही पं० मुनि श्री पद्मचन्द्र जी, जो भण्डारीजी के उपनाम से सर्वतः सुविश्रुत हैं उनकी काफी समय से इच्छा थी कि अपने गुरुदेव की यह रचना जनता के समक्ष आए । यह लेखन बहुत समय पहले कभी लिखा गया था । अपने सौम्य स्वभाव के कारण उन्होंने ( पं० हेम चन्द्रजी ने ) इसके प्रकाशन की दिशा में कोई प्रयत्न नहीं किया । फलतः यह महनीय रचना यों ही रखी रही । पण्डित जी के प्रिय शिष्य श्री भण्डारी जी के अन्तर्मन में भावना जगी कि यह विराट शास्त्र आधुनिक शैली से पुनः संपादित होकर प्रकाश में आए। मुझे हार्दिक प्रसन्नता है कि भंडारी जी की उक्त मंगल भावना ने आज सुचारुरूप से मूर्तरूप लिया है । और यह सब हुआ है उन्हीं के प्रिय शिष्य प्रवचनभूषण पं० श्री अमर - मुनिजी के द्वारा । श्री अमर मुनिजी व्याख्याकार पं० श्री हेमचन्द्र जी के प्रशिष्य ( पौत्र शिष्य ) हैं । श्री अमर मुनिजी एक महान् कर्मठ, योग्य, विचारक एवं जिनशासनरसिक तरुण मुनि हैं । सेवा की तो जीवित प्रतिमूर्ति ही हैं. वे । सन् १९६४ के जयपुर वर्षावास में अस्वस्थता के समय उन्होंने जो मेरी उदात्त सेवा-परिचर्या की है, वह मेरे स्मृतिकोष की सुरक्षित निधि है । वस्तुतः अमर मुनिजी में अपने पूर्व गुरुजनों की संस्कारधारा प्रवाहित है, जो उन्हें यशस्वी बनाती रही है, नात रहेगी। प्रश्न व्याकरण सूत्र का प्रस्तुत संस्करण, जिसमें अनेक महनीय मुनिवरों एवं भक्त श्रावकों की भावना, श्रम एवं सहयोग की मंगल श्री जुड़ी हुई है, एक अतीव सुन्दर संस्करण है । अतः प्रबुद्ध विद्वान् तथा साधारण जिज्ञासु, दोनों ही इससे यथोचित लाभ उठा सकते हैं। मैं आशा ही नहीं, विश्वास के साथ कह सकता - 'आगम साहित्य साधना के प्रशस्त क्षेत्र में यह सुरुचिर संस्करण चिरयशस्वी रहेगा ।'
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy