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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र न चावेदयित्वाऽस्ति खलु मोक्ष इति । एवमाख्यातवान् ज्ञातकुलनन्दनो महात्मा जिनस्तु वीरवरनामधेयः, कथितवांश्चालीकवचनस्य फलविपाकम् । एवं तद्वितीयमप्यलीकवचनं लघुस्वकलघुचपलभणितं भयङ्करं दुःखकरमयशस्करं वैरकरमरतिरतिरागद्वेषमनःसंक्लेशवितरणमलीकनिकृतिसातियोगबहुलं नीचजननिषेवितं निःशंसं (नृशंसं, निः शेषं वा) अप्रत्ययकारकं परमसाधुगर्हणीयं परपीड़ाकारकं परमकृष्णलेश्यासहितं दुर्गतिविनिपातवर्द्धनं पुनर्भवकरं चिरपरिचितमनु (ना) गतं दुरन्तं (दुरुक्तं) द्वितीयमधर्मद्वारं समाप्तम् ॥ (सू०८)
पदार्थान्वय—(य) और (तस्स) उस (अलियस्स) असत्य के (फलविवागं) कर्मफल को, (अयाणमाणा) नहीं जानते हुए (महब्भयं) महाभयंकर, (अविस्सामवेयणं) निरन्तर वेदनायुक्त (दोहकालं) दीर्घकाल तक, (बहुदुक्खसंकडं) बहुत दुःखों से व्याप्त, (नरयतिरिक्खजोणि) नरक और तिर्यञ्च योनि में (वड्डेति) वृद्धि करते हैं । (य)
और (तेण अलिएण) उस असत्य से (समणुबद्धा) अच्छी तरह जकड़े हुए, (आइद्धा) चिपटे हुए, (दुग्गतिवसहिमुवगया) दुर्गति में निवास पाये हुए जीव (भीमे) भयानक, (पुणब्भवंधकारे) पुनर्जन्मरूप-संसाररूप अंधकार में (भमंति) भ्रमण करते हैं। (य) तथा (ते) वे जीव (इह) इस लोक में (दुग्गया) दुःखमय स्थिति में पड़े हुए, . (दुरंता) अन्त में दुःख पाने वाले, (परवस्सा) परतंत्र, (अत्थ-भोगपरिवज्जिया) धन
और भोगों से विहीन (असुहिता) सुखों से रहित अथवा सुहृदों से रहित, (फुडियछविबीभच्छविवन्ना) बीवाई, खुजली आदि से चर्मविकार वाले, विकरालरूप और खराब रंग वाले, (खरफरुसविरत्तज्झामझुसिरा) कठोर और खुर्दरे स्पर्श वाले व कहीं पर भी आराम न पाने वाले, फीको कान्तिवाले और निःसार-क्षीण शरीर वाले, (निच्छाया) निस्तेज, (लल्लविफलवाया) अस्पष्ट और निष्फल वाणी वाले, (असक्कतमसक्कया) संस्कारहीन और सत्काररहित अथवा असंस्कृत (गंवार) और सुसंस्कृत भाषा से रहित, (अगंधा) दुर्गन्ध से भरे, (अचेयणा) विशिष्ट चेतना जागति से रहित, (दुब्भगा) अभागे, (अकांता) सौन्दर्य से रहित, (काकस्सरा) कौए के समान अप्रिय स्वर वाले, (हीणभिन्नघोसा) धीमी तथा फटी हुई आवाज वाले, (विहिंसा) लोगों द्वारा खासतौर से सताये जाने वाले, (जडबहिरंधया) मूर्ख, बहरे और अंधे, (मूया) गूगे, (य) और (मम्मणा) अस्पष्ट उच्चारण करने वाले, (अकंतविकयकरणा) अमनोज्ञ एवं विकृत इन्द्रियों वाले, (णीया) जाति, कुल, गोत्र तथा कामों से नीच,