________________
१९२
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में वे कहते हैं—यह सब उन वस्तुओं का स्वभाव ही है। वस्तुस्वभाव के अतिरिक्त काल नाम की कोई चीज नहीं दिखाई देती।
इसी प्रकार मृत्यु भी कोई चीज नहीं है । चूँकि आस्तिक लोग परलोकगमन को मृत्यु कहते हैं । जब जीव ही नहीं है, तब परलोक में गमन किसका होगा ? किसकी मृत्यु होगी ? और परलोक का भी तो कोई अतापता नहीं है । इसलिए मृत्यु भी सिद्ध नहीं होती।
___अथवा 'कालमच्चू' को एक शब्द माना जाय तो अर्थ है--कालक्रम से आयुष्य का क्षय हो जान पर जो मृत्यु होती है; वह कालमृत्यु है। ऐसी कालमत्यु भी तब सिद्ध हो, जब पहले आयुकर्म सिद्ध हो जाय । जब आयुष्यकर्म का ही पहले पता नहीं है तब क्षय किसका माना जाय ? अतः कालमृत्यु भी कोई चीज नहीं है।
उन नास्तिकवादियों से जब यह पूछा जाता है कि जब ये सब चीजें नहीं हैं, पुण्य, पाप, धर्म, अधर्म, जीव, काल, मृत्यु, पुनर्जन्म, स्वर्ग,नरक, मोक्ष, त्याग, प्रत्याख्यान आदि सब बातों का कोई अस्तित्व नहीं है तो फिर क्या किया जाय, जिससे जीवन सुखी रहे ? इसके उत्तर में वे इन्द्रियों एवं विषयों के गुलाम नास्तिकवादी कहते हैं-'तम्हा एवं विजाणिकण जहा सुबहु इंदियाणुकुलेसु सव्वविसएसु वट्टह' यानी पूर्वोक्त सब बातें अस्तित्वहीन हैं, यह जान कर इन्द्रियानुकूल सभी विषयों में खूब अच्छी तरह प्रवृत्ति करो । चार्वाकदर्शनकार की भाषा में इसी बात को स्पष्ट कर देते हैं
'यावज्जीवेत् सुखं जीवेत्, ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य, पुनरागमनं , कुतः ॥' 'जब तक जीओ सुख से जीओ,पास में पैसा न हो तो कर्ज ले कर भी घी पीओ। यानी खाओ, पीओ, मौज उड़ाओ। शरीर के निर्जीव होते ही यह जला दिया जायगा । शरीर के साथ ही आत्मा भी यहीं जल जायगी। फिर न कहीं जाना है और न कहीं से वापिस आना ही है। राख बने हुए शरीर का फिर लौट कर इस शरीर में जन्म लेना कैसे संभव है ? आस्तिक लोगों ने पुण्य-पाप, स्वर्गनरक की व्यर्थ की कल्पना करके संसार को दुःख में डाल रखा है। सुख का राजमार्ग तो यही है ! अतएव किसी धर्मभीरु नारी को सम्बोधित करते हुए वे अपनी मनमानी कल्पना के अनुसार कहते हैं
'पिब खाद च चारलोचने !, यदतीतं वरगात्रि ! तन्न ते ।
नहि भीरु ! गतं निवर्तते, समुदयमात्रमिदं कलेवरम् ॥"
अर्थात्-हे सुनयने ! खूब अच्छी तरह से खाओ, पीओ और आनन्द करो, हे सुन्दरि ! जो कुछ बीत गया, वह तेरे हाथ से निकल गया। जो चला गया वह