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________________ १६४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र देशेषु विपुलसीमानि पुष्पाणि च फलानि कंदमूलानि कालप्राप्तानि गृह्णीत, कुरुत सञ्चयं परिजनाथ, शालयो ब्रोहयो यवाश्च लूयन्तां, मल्यन्तामुत्पूयन्तां च, लघु च प्रविशन्तु च कोष्ठागारं, अल्पमहोत्कृष्टकाश्च हन्यतां पोतसार्थाः, सेना निर्यातु यातु डमरं, घोरा वर्तन्तु चसंग्रामाः, प्रवहन्तु च शकटवाहनानि, ' उपनयनं चोलकं विवाहो यज्ञोऽमुकेषु च भवतु दिवसेषु करणेषु मुहूर्तेषु नक्षत्रषु तिथिषु च,अद्य भवतु स्नपनं मुदितं बहुखाद्यपेयकलितं कौतुकं विस्नापकं शान्तिकर्माणि कुरुत शशिरविग्रहोपरागविषमेषु । स्वजनपरिजनस्य च निजकस्य च जीवितस्य परिरक्षणार्थाय प्रतिशोर्षकाणि च दत्त, दत्त च शीर्षोपहार।न् विविधौषधिमद्यमांसभक्ष्यानपानमाल्यानुलेपनप्रदीपज्वलितोज्ज्वलसुगन्धिधूपापकारपुष्पफलसमृद्धान्, प्रायश्चित्तानि कुरुत प्राणातिपातकरणेन बहुविधेन विपरीतोत्पातदुःस्वप्न-पापशकुनासौम्यग्रहचरितामंगलनिमित्त-प्रति घातहेतु, वृत्तिच्छेदं कुरुत, मा दत्त किंचिदानं, 'सुष्ठु हतः सुष्ठु हतः' सुष्ठ छिन्नो भिन्न इति, उपदिशन्त एवंविधं कुर्वन्ति-अलीकं मनसा वाचा कर्मणा च अकुशला अनार्या अलीकाज्ञा अलीकधर्मनिरता अलीकासु कथासु अभिरममाणास्तुष्टा अलोकं कृत्वा भवन्ति च बहुप्रकारम् ।। (सू० ७) पदार्थान्वय—(पुण च) और (जे) जो (केइ) कई (पावा) पापी (असंजया) असंयत, (अविरया) अविरत, पापकर्मों का त्याग न करने वाले, व्रतरहित, (कवडकुडिलकडुयचडुलभावा) कपट, कुटिल, कटुक और चंचल भाव वाले, (कुद्धा) क्रोधी, (लुद्धा) लोभी (भया य). भय के कारण (हस्सट्ठिया) हास्य के लिए (य) और (सक्खी) साक्षी-गवाही देने वाले, (चोरा) चोर, (चार-भडा) गुप्तचर और भट-योद्धा, (खण्डरक्खा) चूंगी के कर्मचारी या जकात अथवा कर वसूल करने वाले, (य) और (जियजयकारा) हारे हुए जुआरी, (गहियगहणा) गिरवी रखने वाले (कक्कगुरुगकारगा) मायापूर्वक अत्यन्त बढ़ाचढ़ा कर बोलने वाले, (कुलिंगी) मिथ्यामत वाले वेषधारी (य) और (उवहिया) मायाचारी (वाणियगा) वाणिज्य-व्यवसाय करने वाले, (कुडतुलकूडमाणी) झूठा तौलने और झूठा नापने वाले, (कडकाहावणोवजीवी) खोटे सिक्कों से आजीविका चलाने वाले, (पडगारा) जुलाहे, (कलाया) सुनार, (कारुइज्जा) कपड़े पर छापने वाले छोपे, बढ़ई, दर्जी आदि कारीगर, (वंचणपरा) ठगाई करने वाले, (चारिय चाडुयार नगर गोत्तिय परिचारगा) हेराफेरी करने वाले, खुशामदखोर (चापलूस), कोटवाल और व्यभिचारी (य) तथा (दुवायि सूयक-अणबल भणिया) झूठे का पक्ष लेने वाले या अपशब्द व गाली बकने वाले, चुगलखोर और बलपूर्वक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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