SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्ययन : मृसावाद-आश्रव १४६ के कल्कनामय वचन असत्यरूप हैं । जितने भी पापजनक या मायाचारपूर्वक वचन हैं, वे सबके सब असत्य की कोटि में आते हैं । वंचणा – ठगाई के वचन बोलना या दूसरों को ठगने की दृष्टि से वचन बोलना, वंचना है । वंचना इसलिए असत्य का अंग बन जाती हैं कि दूसरों को ठगने के लिए कहे गए वचनों में काफी असत्य का अंश मिला रहता है । और ठगे जाने वाले को बाद में उन वचनों से अत्यन्त पीड़ा होती है, मन में सख्त चोट लगती है । कई लोग ऐसी बोगस कंपनी या फर्म सजाकर बैठ जाते हैं कि जहाँ माल बिलकुल नहीं होता; केवल खाली डिब्बे या टीन सजाए हुए पड़े रहते हैं । आने वाले व्यापारी के साथ वे कंपनी के आफिसर ऐसे ढंग से बातें करते हैं कि "आप इतनी रकम जमा करा दीजिए, हम आपको अमुक जगह का 'सोल एजेंट' बना देते हैं, आपको माल बेचने के पीछे इतना कमीशन मिलता रहेगा ।" बेचारा व्यापारी उनके चक्कर में आ कर रुपये दे देता है । परन्तु बाद में न माल व्यापारी के पास पहुंचता है और न पत्र ही । व्यापारी घबड़ा कर जब वापिस बहाँ आता है, तब तक तो वह कंपनी ही वहाँ से गायब हो जाती है । इस प्रकार झूठे वादे, झूठे आश्वासन या झूठे प्रलोभन देकर या सब्जबाग दिखाकर किसी को अपनी ठगी का शिकार बनाना वंचना है, जो सरासर असत्य है । वंचनामय वचन बोलने वाला स्वयं तो अपनी आत्म-वंचना कर ही लेता है, दूसरे चाहे उसके वचनों से वंचित हों या न हों । मिच्छापच्छाकडं – मिथ्या रूप होने से न्यायवादियों द्वारा पीछे किया हुआ - छोड़ा हुआ वचन 'मिथ्या पश्चात्कृत' वचन कहलाता है । यह असत्य का अंग इसलिए माना गया है कि इसमें अधिकतर वाग्जाल में फंसाने की ही प्रक्रिया होती है, वाणी से • ऐसे सब्जबाग दिखाये जाते हैं कि सामने वाला आदमी उसकी बात को सच्ची मानकर फंस जाता है, लेकिन बाद में जब नजदीक आता है तो उसकी बात के अनुसार कुछ नहीं पाता है, इससे निराश होकर वापिस लौट जाता है । जैसे रेगिस्तान में प्यासे हिरन को दूर से पानी का सरोवर भरा हुआ दिखता है, लेकिन पास में जाने पर उसे केवल सूखी रेत ही मिलती है । इससे वह निराश होकर वापिस लौट जाता है, वैसे ही वाणी के द्वारा सब्जबाग दिखाने वालों या आश्वासन वचनों से आसमानी किले बांधने वालों के पास आने वाले लोगों को हताश होकर वापिस लौट जाना पड़ता है । यह भी एक प्रकार की धोखाधड़ी है; जिसमें असत्य का बाहुल्य होता है । इस प्रकार के असत्य में मिथ्याभाषण तो होता ही है, दूसरों को निराशा होने से पीछे लौट जाने की पीड़ाकारी प्रतिक्रिया भी होती है; जिससे इसकी भयंकरता बढ़ जाती है । इसका एक अर्थ यह भी हो सकता है कि किसी के बारे में उसके पीछे झूठमूठ
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy