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________________ ११२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र चोरना जल का मलना और रोकना, अग्नि तथा वायु का अनेक प्रकार के शस्त्रों से टकराना, परस्पर आघात से मारना तथा विराधना संताप देना (य) और (अकाम - काइ' ) अवांछनीय, ( परप्पओगोदीरणाहि ) अपने से अतिरिक्त जनों के द्वारा व्यर्थ ही दुःख पैदा करना, ( कज्जपओयर्णोह) आवश्यक प्रयोजन से, (पेस्स पसुनिमित्त ओसहाहारमा एहि ) नौकर चाकर तथा गाय, बैल आदि पशुओं के निमित्त औषध या आहार आदि के लिए, ( उक्खणणउक्कत्थण पयण- कोट्टण-पीसण-पिट्टण-भज्जण-गालणआमोडण सडण- फुडण-भंजण छेयण- विलु चण-पत्तज्झोडण -अग्गिदहणाइयाई ) खोदना, वृक्षादि की छाल अलग करना, पकाना, कूटना, पीसना, दलना, पीटना, भूनना, छानना, मोडना, सड़ना, स्वतः टूट जाना, मसलना या कुचलना, छेदना, छोलना, 'ओ' का उखाड़ना, पत्ते आदि का तोड़ना या झड़ जाना, अग्नि में जला देना आदि, (इमं ) इस (अनिट्ठ) अनिष्ट ( दुक्ख समुदयं ) दुःख -समूह को, ( पाविति ) पाते हैं । (एवं) इस प्रकार, (भवपरंपरादुक्खसमणुबद्धा) जन्म-परम्परा से निरन्तर दुःख वाले, (पाणा इवाय निरया) प्राणिवध में तत्पर, (ते) वे (जीवा ) हिंसक जीव, ( बोहण करे ) भयंकर, (संसारे) संसार में, ( अनंतकालं) अनन्त काल तक, ( अडंति) घूमते रहते हैं (य) और ( नरगा उवट्टिया) नरक से निकले हुए (जे वि) जिन लोगों ने, (कहि वि) किसी तरह भी, ( इह ) इस मर्त्यलोक में ( माणुसत्तणं) मनुष्यत्व को, ( आगया ) प्राप्त कर लिया है, (वि) वे भी, ( पायसो) बहुत करके, (अधन्ना) भाग्यहीन (विगयविकलरूपा) विकृत और विकल रूप वाले, (खुज्जा) कुबड़े, ( वडभा) जिनके शरीर का ऊपरी हिस्सा टेढा हो (य) तथा ( वामणा) बौने, (य) तथा (बहिरा ) बहरे, (काणा) काने, (कुटा) टूटे, विकृत हाथ वाले, पंगुला पंगु-पांगले (थ) तथा (विगला ) विकलांग ( अपाहिज ) (य) तथा (मूका) मूक-गूगे, (मंमणा ) मन मन शब्द करने वाले या तुतलाने वाले, (य) और (अंधयगा) अंधे, ( एगचक्खूविणिहय- संचिल्लया) जिनकी एक आँख फूट गई है, वे और चपटे नेत्र वाले अथवा ( संपिसल्लया) पिशाचग्रस्त, ( वाहिरोगपीलिय- अप्पाउय - सत्यवज्झबाला) कुष्ठ आदि व्याधियों और ज्वरादि रोगों से पीड़ित, अथवा विशेष प्रकार की आधि-मानसिकव्यथा और कुष्ठ ज्वर आदि रोगों से पीड़ित, अल्पायु, शस्त्रों से मारे जाने वाले अज्ञानी जन (मूर्ख), (कुलक्खणुक्किन्नदेहा) कुलक्षणों से व्याप्त देह वाले, (दुब्बल-कुसंघयणकुप्पमाण-कुसंठिया) दुर्बल, खराब संहनन ( शरीर के कब ) वाले, शरीर के न्यूनाधिक प्रमाण वाले, शरीर की भद्दी रचना - खराब डीलडौल वाले, ( कुरूवा ) कुरूप, (किविणा ) रंक या कंजूस, (य) और ( होणा) जाति आदि से होन-नीच, ( होणसत्ता) अल्प सत्त्व - पराक्रम वाले, ( णिच्चं ) सदा, (सोक्खपरिवज्जिया) सुखों से वंचित, ( असुहदुक्खभागी) अत्यन्त अशुभ परिणाम वाले दुःखों के भागी, ( णरगाओ ) नरक से
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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