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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (दोहकाल) दीर्घकाल तक (पार्वेति) पाते हैं। (किं ते ?) वे दुःख कौन-कौन हैं ? वे निम्न प्रकार के हैं (सोउण्ह-तण्हा-खुह-वेयण-अप्पईकार-अडविजम्मणणिच्चभउविग्गवास - जग्गण - वह - बंधण - ताडणंकण - निवायण - अट्ठिभंजण - नासाभेयणप्पहारमण - छविछेयण - अभिओगपावण - कसंकुसार - निवायदमणाणि) सर्दी, गर्मी, भूख और प्यास को वेदना, प्रतीकाररहितता, घोर जंगल में जन्म लेना, मृगादि पशुओं का नित्य भय से घबराते रहना, जागना, पीटना, बांधा जाना, मारा जाना, तपी हुई लोहे की सलाई आदि से चिह्न करना, खड्डे आदि में फैंक देना, हड्डी तोड़ देना, नाक कान छेदना, प्रहार करना, संताप देना, शरीर के अंगोपांग काट देना, जबर्दस्ती काम में लगाना, चाबुक से पीटना, अंकुश और आर (डंडे के अग्रभाग में लगी हई नुकीली कील) से छेदना, सजा देने के लिए दमन करना) (य) और (वाहणाणि) भार लादना,(मायापितिविप्पओगसोयपरिपीलणाणि) माता-पिता से वियोग कर देना या वियोग होना तथा नाक और मुह आदि के छिद्रों में रस्सी (नकेल) डालकर मजबूती से बाँधकर पीड़ा देना, (य) और (सत्थग्गि-विसाभिघाय-गलगवल. आवलणमारणाणि) शस्त्र, अग्नि या विष से खत्म कर देना तथा गले और सींग को मोड़ना और मारना, अथवा गलकंबल को मोड़कर मारना, (गलजालु च्छिप्पणाणि) वंसी (मछली पकड़ने का कांटा) और जाल से मछली आदि को पकड़ कर जल से बाहर निकालना, (य) तथा (पउलणविकप्पणाणि) अग्नि पर भूनना और काटना, (य) और (यावज्जीविगबंधणाणि) जिंदगीभर बांधे रखना, (य) एवं (पंज़रनिरोहणाणि) पींजरे में बंद कर देना, (सयूहनिडाडणाणि) अपने टोले से निकाल देना, (य) और (धमणाणि) भैस आदि को फूका लगाना, (य) तथा (दोहणाणि) दूहना (कुदंडगलबंधणाणि) गले में डंडा बाँधना, (वाडकपरिवारणाणि) वाड़े में घिरे रखना (य) और (पंकजल निमज्जणाणि) कीचड़ के गंदे पानी में डुबोना (य) और (वारिप्पवेसणाणि) पानी में घुसाना (य) तथा (ओवायणिभंगविसमनिवडण दवग्गिजालदहणाइयाइ) खड्डों में गिर जाने से अंग-भंग हो जाना तथा पहाड़ आदि के ऊबड़खाबड़ स्थानों से गिर पड़ना और दावाग्नि को लपटों से झुलस जाना इत्यादि दुःख हैं। (एवं) इस प्रकार, (ते) प्राणियों का वध करने वाले वे (पापकारी) पापकर्मकर्ता, (दुक्खसयसंपलित्ता) सैकड़ों दुःखों से जले हुए (नरगाओ) नरक से (आगया) आए हुए (इह) इस तिर्यंचगति में, (सावसेसकम्मा) भोगने से शेष बचे हुए कर्म वाले (तिरिक्खपंचेंदिएसु) तिर्यचपंचेन्द्रियों में, (पमाय राग-दोस बहुसंचियाई) प्रमाद, राग और द्वष के कारण बहुत से संचित किये गए, (अतीवअस्सायकक्कसाई) अत्यन्त कठोर दुःख देने वाले (कम्माई) कर्मजन्यदुःखों को (पावंति) पाते हैं। (य) तथा (चरिदियाण) चार इन्द्रियों वाले जीवों की (भमर-मसग-मच्छिमाइएसु) भौरे, मच्छर और मक्खी आदि की योनियों में, (नहिं जाइकुलकोडिसय
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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