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________________ प्रथम अध्ययन : हिंसा-आश्रव ६५ केसरी शेर और सिंह, घोर आवाजें करते हुए भयावना रूप धारण करके उन नारकियों पर टूट पड़ते हैं और अपनी मजबूत दाढ़ों से नारकों के शरीर के ऊपरी हिस्से को जोर से काटते हैं, फिर उसे खींचते हैं, अत्यन्त पैने नुकीले नखों से फाड़ डालते हैं और तब इधर-उधर चारों ओर फैंक देते हैं, जिससे उनके शरीर के जोड और बन्धन ढीले हो जाते हैं, उनके अंग-अंग विकृत या पृथक् कर दिये जाते हैं। उसके बाद तीखी मजबूत दाढ़, नख और लोहे के समान नुकीली चोंच वाले कंक, टिटहरी, गिद्ध तथा घोर कष्ट देने वाले कौओं के झड उन पर टूट पड़ते हैं और अपने पंखों से उन्हें घायल कर देते हैं, तीखे नखों से उनकी जीभ खींच लेते है और आँखें निकाल लेते हैं तथा निर्दयतापूर्वक उनके मुह को नोचते और कुरेदते हैं। इसके कारण वे जोरजोर से चिल्लाते हैं, कसते हैं, उछलते हैं, नीचे गिरते हैं और इधर से उधर चक्कर लगाते हैं। व्याख्या - यह मूलपाठ पूर्व सूत्र के ही आगे का पाठ है। इसमें पूर्ववणित हिंसा के महाभयंकर फल का उसी सिलसिले में निरूपण किया गया है। पूर्वपाठ में हिंसा करने वालों के नामों का उल्लेख करने के साथ-साथ हिंसा रूप दुष्कर्म के फलस्वरूप नरकागारों और वहाँ दी जाने वाली भयंकर यातनाओं का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत मूलपाठ में नरकों में नारकियों को दी जाने वाली तीव्र यातनाएँ, उनके कारण नारकियों में होने वाली प्रतिक्रिया, नरकपालों द्वारा उनकी पुकार के बदले में उनके पूर्व कुकर्मों की याद दिला-दिला कर भयंकर से भयंकर पीड़ाएं देने के विविध तरीकों, पीड़ाएँ देने के लिए विविध शस्त्रों और उनके प्रहारों के विविध ढंग एवं नरक में वैक्रियजन्य विविध हिंस्र पशुपक्षियों द्वारा नारकियों के शरीर को क्षत-विक्षत करने आदि का स्पष्ट वर्णन शास्त्रकार ने किया है। इन नरकयातनाओं के वर्णन को पढ़ने-सुनने वाले के भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं तो फिर जिन्हें इन यातनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ है,या इस दुनिया में भी मनुष्य और तिर्यञ्चयोनि पाए हुए जीवों की विविध दुःखद यातनाओं का दर्शन हुआ है या होता रहता है, वे स्वयं अनुमान लगा सकते हैं कि नरक के दु:ख कितने भयंकर हैं और किस-किस प्रकार से प्राप्त होते हैं ? हिंसा करने वाले व्यक्ति यहाँ चाहे समाज, राष्ट्र या सरकार की नजरों से बच जायँ, यहाँ चाहे वे सरकार की आँखों में धूल झोंक कर अपने को निर्दोष साबित कर दें अथवा समाज या सरकार पर दबाव डालकर पशुपक्षियों की हत्या का खुल्ला परवाना पा लें, किन्तु अपने दुष्कर्मों की आँखों से बच नहीं सकते, उनके हिसाब में कोई गड़बड़ नहीं हो सकती, उनका फल भोगना अवश्यम्भावी है। मनुष्य न चाहे तो भी उसके दुष्कर्म
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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