________________
प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
हि आहे हि । किं ते ? मोग्गर-मुसु ढि - करकय सत्ति - हल
तोमर- सूल - लउल - भिडिमाल
गय - मुसल - चक्क - कोंत सब ( ६ ) ल पट्टिस चम्मेटु दुहण - मुट्ठिय असि खेडग - खग्ग चाव - नाराय - कणक - कििण वासि-परसुकंटक ( टंक) - तिक्ख-निम्मला अण्णेहि य एवमादिएहि असुभेहि वे उव्विएहिं पहरणसतेहिं अणुबद्धतिव्ववेरा परोप्परवेयणं उदीरेंति अभिहता । तत्थ य मोग्गरपहारचुण्णिय - मुसु ढिसंभग्गमहितदेहा जंतोवपीलण फुरंत कप्पिया के इत्थ सचम्मका विग्गत्ता णिम्मूलूण कोणासिका छण्णहत्थपादा ( तत्थ य) असि - करकयतिक्ख कोंत परसुप्पहार फालियवासी संतच्छितंगमंगा कलकलमाणखारंपरिसित्तगाढ डज्झतगत्त - कुतग्गभिण्ण - जज्जरियसव्वदेहा विलोलंति महीतले विसूरिणयंगमंगा, तत्थ य विग सुणग सियाल - काक - मज्जार- सरभ - दीविय वियग्ध - सद्दूल सीह - दप्पिय खुहाभिभूतेहिं णिच्चकालमणसिएहि घोरा रसमाणभीमरूवेहि अक्कमित्ता दढदाढा - गाढडक्क कड्डिय - सुतिक्ख नहफा लियउद्धदेहा विच्छिष्पंते समंतओ विमुक्कसंधिबंधणा वियंगमंगा कंक - कुरर-गिद्ध घोरकट्ठवाय सगणेहि य पुणो खरथिरदढणक्ख - लोहतुडेहि ओर्वादि (ति) त्ता पक्खा - हय- तिक्खणक्खविकिन्न - जिब्भंछिय नयण निद्द (द्ध) ओलुग्गविगतवयणा उक्कोसंता य उप्पयंता निपतता भमंता ।
संस्कृत - छाया
-
-
-
-
-
-
-
·
-
-
-
·
-
·
८७
-
पूर्वकर्मकृतसंचयोपतप्ता निरयाग्निमहाग्निसंप्रदीप्ता गाढदुःखां महाभयां कर्कशामसातां शारीरीं मानसीं च तीव्रां द्विविधां वेदयन्ति वेदनां पापकर्मकारिणो बहूनि पत्योपमसागरोपमाणि करुणं पालयन्ति ते यथायुष्कं यमकायिकत्रासिताश्च शब्दं कुर्वन्ति भीताः । किं तत् ? अविभाव्य ! स्वामिन् ! भ्रातः ! पितः ! तात ! जितवन् ! मुञ्च मां, म्रिये, दुर्बलो व्याधिपीडितोऽहम् किमिदानीमस्मि ! एवं दारुणो निर्दयो ( भूत्वा ) मा देहि मे
1