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प्रथम अध्मयन : हिंसा-आश्रव
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करते, कराते या करने में निमित्त बनते हैं। बहुत से ऐसे देश हैं, या प्रान्त अथवा जनपद हैं, जहाँ के क्षत्रिय, राजपूत या सरदार अथवा शासक अपने आमोद-प्रमोद के लिए जानवरों का शिकार करते हैं, कराते हैं, मनुष्यों, सांडों या मुर्गों आदि को आपस में लड़ाकर खत्म करा देते हैं ।
दूसरी और तीसरी कोटि के लोगों का निर्देश करते हुए शास्त्रकार स्वयं कहते हैं-"जलयर-थलयर......"पाणाइवायकरणं" यानी जलचरों, स्थलचरों, सिंहादि तीखे नखों वाले चौपाये जंगली जानवरों, सर्पादि उरःपरिसर्प जातीय जीवों, खेचरों (पक्षियों), संडासी के समान मुंह वाले जीवों आदि को आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा वाले या इन चारों संज्ञाओं से रहित-सिर्फ आमोद-प्रमोदजीवी-पर्याप्तक-अशुभ लेश्या और अशुभ परिणाम से युक्त पापी—ये जीव और इसी प्रकार के दूसरे मानव प्राणिवध किया करते हैं।
___आमोद-प्रमोद के लिए जीवों की हिंसा करने वाले लोगों में अधिकतर ऐसे लोग हैं, जो अपने को बड़े आदमियों की श्रेणी में मानते हैं। वे निर्दोष प्राणियों का शिकार करते हैं। प्रायः यही कहा करते हैं कि ये जंगली जानवर मनुष्यों को सताते, मार डालते या उन पर हमला कर बैठते हैं, इसलिए हम मनुष्यों की सुरक्षा के लिए उनका शिकार करते हैं। हम बहादुर हैं, क्षत्रिय हैं और प्रजा के रक्षक हैं, शिकार करना वीरों का कर्तव्य है। परन्तु वास्तव में देखा जाय तो उन निहत्थे सिंह, चीता आदि प्राणियों को लुक-छिपकर मारने में कौन-सी वीरता है ? वे बेचारे वैसे ही बस्ती में आने से और किसी पर सहसा हमला करने से घबराते हैं। वे अपनी जान बचाने के लिए पर्वत की गुफाओं में, बीहड़ों में या घोर जंगलों में, जनशून्य प्रदेशों में आश्रय लेते हैं, सिंह आदि भी अत्यन्त भूखे होने पर या सताये अथवा छेड़े जाने पर किसी मनुष्य पर हमला करते हैं । मनुष्य उनको मारने के बदले अपना प्रेम देकर गाय-भैंस हाथी आदि की तरह उन्हें पालतू भी बना सकता है। अस्तु उनके प्राणहरण करने की अपेक्षा उन्हें पालतू बना देना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है और इसी में सृष्टि के सर्वोत्तम प्राणी-मानव की वीरता है।
क्षत्रिय का अर्थ मूक, निहत्थों व प्राणों की भीख मांगने वालों पर अत्याचार करना, और विनाश के मुंह में उन्हें धकेल देना नहीं है, अपितु 'क्षतात् त्रायते रक्षतोति क्षत्रियः' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो दुर्बलों, निहत्थों और निर्दोष जानवरों या मानवों को नाश-आफत से बचाए वही सच्चा क्षत्रिय है। शिकार खेलने में ही बड़प्पन या बहादुरी नहीं है । कई राजपूत राजा, महाराजा अथवा कई अंग्रेज लोग चिड़ियों, मछलियों आदि को बंदूक या पिस्तौल का निशाना बना कर मार डालते हैं। पुराने जमाने में रोम और ग्रीस में एक बड़े मैदान में गुलामों को आपस