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________________ ७७ प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव वे 'दुःख 'कौन-कौन से हैं? इसके उत्तर में शास्त्रकार कहते हैं - लोहे की छोटी व बड़ी कड़ाही में पकाना, उबालना, तवे पर तलना, भाड़ में भू' जना, लोहे की कड़ाही में खूब उबाल कर काढ़ा बनाना, अज्ञानी मनुष्य जैसे दैवी के आगे जीवों की बलि देते हैं, वैसे ही अंगों को काटना और पीटना, सेमलवृक्ष के तीखे नोकदार लोहे के काटों पर फैलाना और घसीटना, फाड़ना और चीरना, भुजाओं और सिर को पीछे से उलटे बांध देना, सैंकड़ों लाठियों से पीटना, गले में फांसी लगाकर लटका देना, शूलों की नोंक से छेदना, झूठी बात कहकर ठगना, डांटना, धमकाना और अपमान करना; इन जीवों ने अमुक महापाप किये हैं, यों जोर-जोर से चिल्लाते हुए वध्यभूमि ( कत्लगाह ) को ले जाना इत्यादि, सैंकड़ों वध्यभूमियों में जैसे दुःख उत्पन्न होते हैं उन दुःखों को वे नारक सदा भोगते रहते हैं । व्याख्या इस सूत्र पाठ में शास्त्रकार ने हिंसा करने वाले जीवों और हिंसा के दुःखद फलों का पर्याप्त उल्लेख किया है । वस्तुतः हिंसा करने वाले हिंसा करने में प्रवृत्त होते समय यह नहीं सोच पाते कि इस क्रिया का फल क्या होगा ? फल भोगते समय मुझे कितना दुःख उठाना पड़ेगा ? उस समय मेरे उस दारुण दुःख में कौन हिस्सेदार होगा ? कौन मुझे आश्वासन देगा ? कौन शरण देकर उस समय मुझे दुःखों से बचाएगा ? कितने लम्बे अरसे तक मुझे नरक की भयंकर काल कोठरियों में सड़ना पड़ेगा ? उस समय मेरी कितनी विवशता होगी ? इन सव प्रश्नों का समाधान करने के लिए शास्त्र कार ने 'फलविवागं अयाणमाणा' आदि पदों से स्पष्ट वर्णन किया है और हिंसा के कटु फलों का स्पष्ट उल्लेख भी । हिंसकों की मुख्य तीन कोटियाँ - हिंसा करने वाले प्राणियों, खासकर मनुष्यों को तीन कोटियों में विभक्त किया जा सकता है— पहली कोटि में वे आते हैं, जो अपनी जीविका ( रोजी) के लिए हिंसा करते हैं, दूसरी कोटि में वे हैं, जो अपने आमोद प्रमोद के लिए हिंसा करते हैं, और तीसरी कोटि में वे आते हैं जो रसलोलुपतावश सिर्फ खाने के लिए हिंसा करते हैं, करवाते हैं या करने में समर्थक बनते हैं । शास्त्रकार ने प्रस्तुत सूत्रपाठ में सर्वप्रथम हिंसा से अपनी आजीविका चलाने वाले प्रथम कोटि के व्यक्तियों का निरूपण किया है । वे हैं—सूअर पाल कर मारने वाले, मछलियां पकड़ने वाले, बहेलिए, शिकारी, जंगली जानवरों का शिकार करने के लिए अनेक प्रकार के साधन लिए हुए घूमने वाले, शहद पाने के लिए मधुमक्खियों का नाश करने वाले, चिड़िया के बच्चों को पकड़ कर मारने वाले, जलाशयों को
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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